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प्रकरण अट्ठारहों
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दिलाना लिखते हैं परन्तु स्वामि मणिलालजी ने लौकाशाह को पाटण में यति दीक्षा दिलादी फिर भी ४५ दीक्षाको वे क्यों जाने दें। आपने प्रमुवीर पटावली पुस्तक के पृष्ठ १७५ पर लिख दिया कि लौकाशाह यति दीक्षा लेने के बाद उन ४५ मनुष्यों ने लौकाशाह के पास दीक्षा लेली परन्तु अमोलखऋषिजी ने तो ४५ क्या पर १५२ मनुष्यों के साथ लौकाशाह दीक्षा ली लिखा दिया, बाद लौकाशाह का काल होने पर फिर ऋषिजी को ४५ मनुष्यों की स्मृति हो आई तो वे भी ४५ दीक्षाको क्यों कब जाने दें लौकाशाह का काल हो गया तो क्या हुआ आपने अपनी शानोद्धार मीमांसा नामक पुस्तक के पृष्ठ ६६ के ऊपर लिख दिया कि वे ४५ बैरागी पुरुष माणाजी के पास दीक्षित हुए। क्योंकि इस अपठित समाज में प्रमाण की तो जरूरत ही नहीं है जिसके जी में आया वह लिख मारा । परस्पर विरुद्धता को भी इनको परवाह नहीं है क्योंकि उन ४५ मनुष्यों के लिये संतबालजी तो ज्ञानजी यतिजी के पास दीक्षा ली लिखते हैं, मणिलालजी यति लौकाशाह के पास और अमोलखऋषिजी लौकाशाह का देहान्त के बाद भाणाजी के पास दीक्षा लेना लिखते हैं इन तीनों के तीन मत हैं इसमें झूठा कौन ? यों तो तीनों झूठे मिथ्यावादी हैं क्योंकि किसी स्थान पर ४५ मनुष्यों को दीक्षा लेने का उल्लेख नहीं है । सबसे पहली यह कल्पना वा० मो० शाह ने की है शेष लेखकों ने बिना सोचे समझे बिना प्रमाण अपने अपने लेखों में घसीट मारा है यदि कोई स्थानकमार्गी समाज का समझदार इन तीनों लेखकों को पूछे कि आपने उन ४५ मनुष्यों के दीक्षा लेने की बात भिन्न भिन्न रूप से लिखदी है, इसमें झूठा कौन ? और यह बात श्राप
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