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________________ क्या. लौं. दीक्षा ली थी? चलाया आजकल क और वे ही मत है कि लोकाशाह गृहस्थ था, और उसके चलाये हुए मत को ही आज लोंकामत कहते हैं तथा स्थानकमार्गी भी अपना मत लौकाशाह का चलाया हुआ मानते हैं। अब जब कभी स्थानक मार्गी कहीं वाद विवाद में खड़े होते हैं, तब प्रतिपक्षियों की ओर से हमेशा यही कहा जाता है कि तुम्हारा मत तो गृहस्थ से चलाया हुआ है, तुम्हारे गुरु गृहस्थ लौकाशाह हैं, इत्यादि । परन्तु यह बात भाजकल के नवशिक्षित दीक्षित स्थानकमार्गी साधुओं को खटकने लगी है, और वे इसका बचाव करने के लिए अनेकों युक्तियें लगा आखिर एक कल्पना कर पाये हैंजैसे स्वामी मणिलालजी ने अपनी प्रभुवीर पटावली नामक पुस्तक के १७० पृष्ट पर लिखा है कि "लोकाशाह अकेले पाटण यति सुमति विजयजी के पास गए और उनसे दीक्षा ग्रहण कर अपना नाम लक्ष्मी विजय रक्खा। यह दीक्षा भी चातुर्मास में अर्थात् वि० सं० १५०९ श्रावण सुदि ११ को ली थी।" __परन्तु यह बात हमारे स्था० साधु अमोलखऋषिजी को नहीं रुची, क्योंकि इतने बड़े समुदाय का स्वामी अकेला दीक्षा ले यह ऋषिजी को कैसे अच्छी लगे। इसी गरज से आपने अपनी शास्त्रोद्धार मीमांसा पृष्ठ ५९ में लिख दिया कि लौकाशाह ने १५२ मनुष्यों के साथ दीक्षा ली थी। किन्तु दीक्षा के उमेदवार जो ४५ मनुष्य थे उनके लिये क्या हुआ? कारण वा० मो० शाह तथा स्वामी संतबालजी तो लौकाशाह को दीक्षित नहीं पर गृहस्थ मानते हैं और उन ४५ मनुष्यों को लौकाशाह की सम्मति से यति ज्ञानजी (प्राचार्य ज्ञानसागर सूरि ) के पास दीक्षा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003664
Book TitleShreeman Lonkashah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherShri Ratna Prabhakar Gyan Pushpmala Phalodhi
Publication Year1937
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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