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________________ ११९ लौं कामाह और मुंहपत्तो करते समय मुंहपत्ती हाथ में ही रखते थे, और लौकाशाह ने ये नयो प्रवृति करी यह सिद्ध होता है। (२) दूसरा लौकाशाह ने मुंहपर मुंहपत्ती बान्धी थी तो लौकाशाह के अनुयायी लौका. गच्छ के श्री पूज्य-यति और श्रावक हाथ में मुंहपत्ती क्यों रखते हैं ? और यह कब से शुरू हुई अर्थात लौकाशाह के बाद किस किस आचार्य ने किस समय मुंहपत्ती का डोरा तोड़ मुंहपत्ती हाथ में रखनी शुरू की जो आज पर्यन्त लौकागच्छ के श्री पूज्य-यति और श्रावक मुंहपत्ती हाथ में रखते हैं और लौंकाशाह की मुंहपर मुंहपत्ती बान्धने की प्रवृति को लौकागच्छ के श्री पूज्यों, यतियों और श्रावकों ने तोड़ कर हाथ में रखने की प्रवृति क्यों की ? क्या ऋषिजी के पास इन दो प्रश्नों का उत्तर देने का कुछ प्रमाण है ? कुछ नहीं। - वास्तव में लौकाशाह ने डोराडाल मुंहपर मुंहपत्ती नहीं बान्धी थी । यदि लौकाशाह ने मुँहपर मुँहपत्ती बान्धी होती तो लौकाशाह के समसामायिक पं० लावण्यसमय, उ० कमलसंयम, मुनिजी वीका तथा लौकागच्छोय यति भानुचन्द्र अपने ग्रन्थों में लौकाशाह की मान्यता के विषय में जैन साधु, जैनागम, सामायिक, पौसह, प्रतिक्रामाणादि की चर्चा और खण्डन मण्डन किया है वे मुंहपत्ती का भी उल्लेख अवश्य करते परन्तु उन्होंने मुंहपत्ती विषय एक शब्द तक भी उच्चारण नहीं किया इससे स्पष्ट पाया जाता है कि न तो लौंकाशाह ने मुंहपर मुंहपत्ती बान्धी थो और न उस समय इस बात की चर्चा भो हुई थी इतना ही क्यों पर विक्रम की सत्रहवीं शताब्दी के अन्तिम चरण में लौकामत में यति केशवजी, लौकामतानुसार बड़े ही विद्वान और प्रभाविक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003664
Book TitleShreeman Lonkashah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherShri Ratna Prabhakar Gyan Pushpmala Phalodhi
Publication Year1937
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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