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________________ प्रकरण-पन्द्रहवां लौंकाशाह और मुंहपत्ती का डोरा । री शोध एवं खोज से आज पर्यन्त श्रीमान् लोकाशाह । के जीवन विषय जितने लेखकों * के लेख मिले हैं उनमें केवल एक स्वामि अमोलखर्षिजी के लेखकों को अलग रख दिया जाय तो सबके सब लेखकों का एक ही मत है कि लौकाशाह किसी और किसी भी अवस्था में डोरा डाल मुंह पर मुंहपत्ती नहीं बान्धी थी और यह बात भी यथार्थ है। क्योंकि जब लौकाशाह जैन यतियों, जैनमन्दिर उपाश्रय के साथ द्वेष के कारण जैनश्रमण, जैनागम, सामायिक, पौसह, प्रतिक्रमणादि किन्हीं भी धर्म क्रियाओं को ही नहीं मानता था इस हालत में डोराडाल मुंहपर मुंहपत्ती बांधना तो दर किनारे रहा पर हाथ में भी मुहपत्ती रखने की भी आपको जरूरत नहीं थी, और यह बात एक साधारण बुद्धिवाले के समझ में भी आ सकती है कि सामायिकादि क्रिया ही नहीं करे उस मनुष्य को मुंहपत्ती की क्या आवश्यकता है ? कुछ देर के लिये हम ऋषिजी का कहना मान भी लें कि लौकाशाह डोराडाल के मुंहपर मुंहपत्ती बान्धी थी, तो सबसे पहले दो प्रश्न पैदा होंगे (१) सब से प्रथम लौकाशाह ने ही मुंहपत्ती बान्धी थी तो लौकाशाह के पूर्व जैन साधुश्रावक धर्म क्रिया देखो प्रकरण चौथा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003664
Book TitleShreeman Lonkashah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherShri Ratna Prabhakar Gyan Pushpmala Phalodhi
Publication Year1937
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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