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लौंमाशाह और मूर्तिपूजा पुस्तक के अधार पर लिखा है कि भगवान महावीर के बाद ८२२ वर्ष में जैन मूर्तियों की स्थापना हुई। इस समय के पूर्व जैनों में मूर्तिपूजा नहीं थी।
(३) श्रीमान् वाड़ीलाल, मोतीलाल शाह अहमदाबाद वालों ने अपनी “ऐतिहासिक नोंध" नामक पुस्तक के पृष्ठ १८ पर लिखा है कि आचार्य वा स्वामी का शिष्य आचार्य वनसेनसूरि के समय पाँच, सात एवं बारह वर्ष का दुष्काल पड़ा और उस समय शिथलाचारी प्राचार्यों ने मूर्ति पूजा प्रचलित को। यह समय महावीर के बाद छट्टो शताब्दी का था ।
(४) स्थानकवासी मुनि सोभाग्यचन्द्रगी (संतबालजी) ने "जैन प्रकाश" अखवार में धर्मप्राण लौकाशाह की लेखमाला लिखते हुए बतलाया है कि सम्राट अशोक के समय जैन मूत्तियाँ प्रचलित हुई । सम्राट अशोक का समय महावीर प्रभु के बाद तीसरी शताब्दी का है । पश्चात् में दूसरे शताब्दी पर आये और अब बड़ली वाले शिलालेख से भगवान महावीर के बाद ८४ वें वर्ष मूर्ति पूजा शुरु हुई इसको मानने लगे।
(५) स्थानकवासी मुनि मणिलालजी अपनी "जैन धर्म नो प्राचीन संक्षिप्त इतिहास अने प्रभुवीर पट्टावली” नामक पुस्तक के पृष्ठ १०९ तथा १३१ में इस प्रकार उल्लेख करते हैं कि "मूर्तिपूजानी शरूआत जैनोंमाँ श्री वीरनिर्वाणना बीजा सेंकाना अन्तमां थई होय प्रेम केटलाक प्रमाणों पर थी समजी शकाय छेxxx सुविहित प्राचार्यों श्री जिनेश्वरदेवनी प्रतिमार्नु अवलंबन बताव्युं तेनुं जे परिणाम मेलववा शचार्यों श्रे धायु तुं ते परिणाम केटलेक मंशे भाव्युं पण खरूँ अर्थात् श्री
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