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________________ ( ९ ) भाग ) की टोपलियाँ शिर पर उठा-उठाकर दूर फेंकने का प्रयत्न किया होगा । आचार्य हरिभद्र और हेमचन्द्रसरि ये कोई साधारण व्यक्तिएँ होंगे कि उनकी क्रान्ति उनके साहित्य में ही रह गई। और लौकाशाह एक महान् पुरुष होगा कि उनकी क्रांति ने जगत् का उद्धार कर डाला - पर यह तो विचारिये कि इस स्वप्न संसार की सत्ता कितनी है वहाँ तक ही तो नहो कि जहाँ तक आँख न खुले ? क्योंकि आँख खुलने पर तो स्वयं श्राप भी देख सकते हो कि आपके समुदाय में जो ३२ सूत्र माने जा रहे हैं उनमें से एकादुश अङ्गों के अतिरिक्त समय सूत्र जम्बूस्वामी के बाद बनाये गये हैं तथा वे ३२ सूत्र जम्बूस्वामी के बाद दशवीं शताब्दी में लिखे गये हैं जो कि आपकी स्वप्न दृष्टि का मध्यम काल था । जिन सूत्रों को आप खास तीर्थङ्करों की वाणी समझते हैं अब उनके मानने के विषय में आपके लिए दो प्रश्न पैदा होते हैं - प्रथम तो यह कि यदि इन सूत्रों के रचनाकाल या लेखन समय को सुविरहित समय मानते हों तो जम्बूस्वामी से सड़ा प्रवेश होने की आपकी मान्यता सिद्ध नहीं होगी वरन् आपके माने हुए बत्तीस सूत्र विश्वास करने योग्य नहीं रहेंगे। कारण जब वे सड़े के समय ही रचे गये या लिखे गये हैं तो उनमें भी सड़े के होने की कल्पना करनी पड़ेगी । जैसे कि आपने मूर्त्ति के विषय की है । . 1 दूसरा प्रश्न यह है कि जम्बूस्वामी चरमकेवली और भद्रबाहुस्वामी तक जो चतुर्दश पूर्वघर विद्यमान थे और जिन्हें आप सर्वज्ञ समान समझते हैं उनमें से तो किसी एक ने भी यह कहीं नहीं कहा कि उस समय जैन शासन में सड़ा (विकार) प्रवेश हुआ था --- फिर समझ में नहीं आता है कि केवल आपने ही यह शब्द Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003664
Book TitleShreeman Lonkashah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherShri Ratna Prabhakar Gyan Pushpmala Phalodhi
Publication Year1937
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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