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लौं० नयामत. कारण
दिल में बेईमानी आने से एक पुस्तक के ७ पन्ने लिखने छोड़ दिए। जब यतिजी ने पुस्तक अधूरी देखी तो लौका को उपालंभ दिया । और उपासरा से निकाल दिया, और दूसरे यतियों को भी लौंका से पुस्तक लिखवाना बन्द कर देने को कहा । इसी कारण लौंका ने यतियों से विरोध कर अपना नया मत निकाला x x x "
अज्ञान तिमिरभास्कर पृष्ठ २०३ इसी बात को प्रकारान्तर से स्वामी मणिलालजी अपनी प्रभुवीर पटावली में लिखते हैं वह यह है:- (सारांश)
वि० सं० १५०६ में लौकाशाह ने पाटण में यति सुमति विजयजी के पास जाकर दीक्षा ली, बाद में घूमते घूमते अहमदाबाद झवेरीवाड़ में आकर चौमासा किया और लोगों को उपदेश देना शुरू किया कि मूर्तिपूजा का शास्त्रों में उल्लेख नहीं है, इत्यादि । बाद की बात स्वामीजी के शब्दों में कहीं जाय तोः
___"संघ ना श्रद्धालु तत्काल झवेरीवाड़ा ना उपाश्रय (ज्यां लौकाशाह उपदेश आपता हता) आव्या अने लौकाशाह ने संघ नी मालकीनो मकान खाली करवा धमकी आपी । लौकाशाहे आवेल श्रावकों ने समझावानी कोशिश करी, पण यतियोंनी सज्जड़ उश्केरणी ने कारणे यति भक्तोंए काई दाद न दीधी । भेटलुंज, नहीं पण तेमांना केटलाक स्वच्छन्दी
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