SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 108
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ लौं• जै० परिस्थिति क्षण भरके लिए आत्मा को जड़वत् बनादेती है । क्योंकि एक ओर तो गृह क्लेश, चैत्यवास, और शिथिलाचार को दूर करना, तथा दूसरी ओर विधर्मियों के होते हुए आक्रमणों को सहन कर शास्त्रार्थ में उनसे विजय माला छीनना, तीसरी ओर पूर्वाचार्यों द्वारा संस्थापित शुद्धि मिशन द्वारा नित नये जैन बनाते रहना तथा शासन की नींव दृढ़ रखने को जैन मन्दिर मूत्तियों की प्रतिष्ठा करवाना, और अनेक विषयों के अनेक प्रन्थों का निर्माण करने में संलम रहना, इत्यादि उस भीषण परिस्थिति में जो शासन सेवा उन महान् प्रभावशाली श्राचार्यों ने की है वह कदापि भूली नहीं जा सकती है। आज यह बात कह देना बच्चों का खेल सा होगया है कि पूर्व समय में जैन साधु शिथिलाचारी हो जैन शासन को बड़ी हानि पहुँचाई थी। पर यदि थोड़ासा परिश्रम कर तत्कालीन इतिहास को देखा जाय तो, यह कहे बिना कदापि नहीं रहा जायगा कि उस विकट समय में चाहे उनमें से कोई प्राचार्य अपवाद सेवी भले ही रहे हों, पर उस समय उन्होंने हजारों आपत्तियें उठा कर भी जो काम किया है, वह उनके बाद सहखांश भी किसी ने किया हो ऐसा एक भो उदाहरण दृष्टि-गोचर नहीं होता है । यदि यह कहा जाय कि उस बिकट समय में उन आचार्यों ने जैन धर्म का जीवन सुरक्षित रक्खा, तो भी कोई अतिशयोक्ति नहीं है। भगवान महावीर स्वामी से १००० वर्ष तक पूर्व-श्रुत ज्ञान का प्रभावशाली युग है, उसके बाद वीरात् ग्यारवीं शताब्दी से सोलहवीं शताब्दी का काल चैत्यवास का समय है । इन पांच सौ वर्षों में जैनाचार्यों ने जितने राजाओं को जैन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003664
Book TitleShreeman Lonkashah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherShri Ratna Prabhakar Gyan Pushpmala Phalodhi
Publication Year1937
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy