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________________ ६८ प्रकरण नौवाँ कि भविष्य युग तो ऐतिहासिक सत्य साधनों की शोध का पाएगा, उसमें यह बालू की दीवार कैसे टिक सकेगी ? औरों को जाने दो पर ऋषिजी के लेख को तो स्थानकमार्गियों के हाथ से लिखे सूत्र भी झूठा करार देने में काफी है। तथा मूल पाठ "धूवं दाउणं जिणवराण" को बदल अपना नया पाठ बनाना, विद्वत्समाज में हास्य का पात्र बनने ही का तो उपाय है जरा इसे भी तो सोच लीजिए। अस्तु ! प्रसंगोपात इतना कुछ कहने के बाद हम पुनः अपने प्रकृत विषय का अन्तिम निर्णय करते हैं कि उपरि निर्दिष्ट प्रमाणों से "लोकाशाहने न तो ३२ सूत्र लिखे और न लौकाशाह की विद्यमानता में ३२ सूत्रों की कोई मान्यता थी ही" यह पूर्णतः परिस्फुट हो जाता है। __यदि लौंकाशाह ने कुछ लिखा हो तो सूत्रों के अतिरक्त कोई प्रन्थादि लिखा होगा ऐसा वीरवंशावली के उल्लेख से पाया जाता है परन्तु लौकाशाह ने तो आरंभ में ही अपनी योग्यता का दिग्दर्शन करवा दिया । जो आचार्य विजयानन्द सूरि ने लिखा है कि लौंकाशाह ने एक पुस्तक के कई पन्ने लिखना छोड़ देने से यतियों ने उससे लिखाना बन्द करदिया । लौकाशाह के समकालीन वि. ५५२४ में कडूआशाह नाम के एक गृहस्थ ने अपने नाम से जो नया 'कडुआमत' निकाला था उसमें उन्होंने द्वेष के कारण साधु संस्था का बहिष्कार करते हुए भी पंचांगी संयुक्त जैना ऽ गमों को सम्मत माना, और लौंकाशाह का भीषण विरोध किया, उन्होंने तो यहाँ तक लिखदिया कि लौंकामतवालों के घर का अन्न जल भी नहीं लेना चाहिए । ऐसी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003664
Book TitleShreeman Lonkashah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherShri Ratna Prabhakar Gyan Pushpmala Phalodhi
Publication Year1937
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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