________________
द्वारपालों ने उसके लिए मोक्षद्वार खोल दिया ।
यह उपनय कथा है। इस कथा में अभिप्रेत जो सत्य है, उस सत्य का स्वीकार करना है । मात्र धर्मक्रिया से संतोष नहीं मानें, धर्मध्यान की महत्ता समझें ।
१२ भावनायें धर्मध्यान के आलंबन हैं । चित्त में एक भी भावना का चिंतन चलता रहेगा तो वह धर्मध्यान होगा ! और तब आप का चित्त दर्पण जैसा स्वच्छ और निर्मल होगा । उस चित्त में परमात्मा का प्रतिबिंब स्पष्ट दिखायी देगा । अपना चित्त जितना सरल, निर्दोष और निर्मल होगा, उतना विश्व भी स्पष्ट और स्वच्छ दिखायी देगा । भीतर में सुख और आनंद बढ़ता जायेगा । स्वर्ग और नरक का आधार : मनुष्य-मन :
इसलिए उपाध्यायजी कहते हैं: मनुष्य के मन का परिवर्तन, परिपूर्ण परिवर्तन आवश्यक है । शारीरिक परिवर्तन या वस्त्र - परिवर्तन का विशेष मूल्य नहीं है । चित्त में, अन्तःकरण में क्रान्ति होना महत्त्वपूर्ण है। आंतरिक परिवर्तन के बिना, बाह्य परिवर्तन होता है, संन्यास भी ले लेता है मनुष्य, परंतु वह आत्मवंचना ही होती है। इसी द्रष्टि से ही तो दुःखों से पराभूत होकर अथवा सुखों के प्रलोभनों से आकर्षित होकर लिया हुआ संन्यास हेय माना गया है, व्यर्थ माना गया है ! ज्ञानद्रष्टि से यानी आंतर-विचार क्रान्ति से लिया हुआ संन्यास ही यथार्थ होता है । बाह्य भौतिक सुख-भोगों की व्यर्थता का बोध होने पर ही चित्त में संन्यास का, चारित्र का अवतरण होता है। एक कहानी से यह बात स्पष्ट होगी । शायद आप लोगों ने यह कहानी सुनी भी होगी, परंतु आज मैं जिस संदर्भ में कह रहा हूँ, उस संदर्भ में समझना । एक नगर में एक ही दिन दो मृत्यु हुई । एक योगी की मृत्यु हुई, और एक वेश्या की मृत्य हुई। दोनों एक ही दिन, एक ही समय इस संसार से बिदा हुए । दोनों के घर आमने-सामने थे। एक-दूसरे के घर में क्या हो रहा है, दोनों जानते थे। दोनों जीये भी साथ और मरे भी साथ ! परंतु एक आश्चर्यकारी घटना ऐसी घटी कि जो यमदूत उनकी आत्माओं को लेने आये थे, उनमें से एक यमदूत वेश्या को लेकर स्वर्ग की ओर जाने लगा और दूसरा यमदूत योगी को लेकर नरक की ओर जाने लगा । योगी ने यह देखा और यमदूतको पूछा : भैया, तुम्हारी कोई भूल तो नहीं हो रही है ? वेश्या की जा तूं मुझे भूल से नरक में ले जा रहा है ! यह कैसा अन्याय ? कैसा अंधेर ?' उस यमदूत ने कहा : 'हे महानुभाव, हमारी कोई भूल नहीं है, कोई अन्याय नहीं है, कोई अंधेर नहीं है ।
७६
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
शान्त सुधारस : भाग १
www.jainelibrary.org