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की स्मृति का परिचायक है ! __ यात्रा तो अथक... बेरोकटोक... सदैव चलती रहती है... रास्ता बदलता है... कभी मुकाम बदलता है... साथी बदलते हैं... पर मंजिल तो वही रहती है... और यात्रा तो चलती ही है ! __ मेरी यह सर्जनयात्रा तुम्हारी निजी आंतरिक यात्रा में तुम्हें सहारा दे... इन भावनाओं का सर्जन अहंभाव का विसर्जन करे... आत्मभाव... समताभाव का नवसर्जन करे... यही परमात्मा के चरणों में अभ्यर्थना ।
६५-ब, श्यामल रॉ हाऊस, स्कीम नं. ३, सेटेलाइट, अहमदाबाद-३८० ०१५
(३-८-१९९६)
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