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जायें ! मन में रोष...प्रतिकार की तीव्र इच्छा... वगैरह आये बिना रहे नहीं !
यह तो बात है । समता की बात करना सरल है, जीवन में समता से जीना मुडिकल है।
सभा में से : असंभव लगता है !
महाराजश्री : सद्गुरु के अनुग्रह से असंभव भी संभव बन जाता है ! मुश्किल काम भी सरल बन जाता है ! मोह का आवरण टूट जाना चाहिए ! बाद में सब कुछ संभव है, सरल है, सुकर है । मौन कैसे सरल हुआ ?
दूसरी बात है मौन की । माधोजी ने बारह वर्ष तक मौन धारण किया था । आप बारह दिन भी मौन रह सकते हो ? नहीं न ? माधोजी ने दुनिया से सभी संबंध तोड़ दिये थे! पत्नी चली गई और स्नेही-स्वजन-मित्र वगैरह विमुख हो गये ! अब किस से बात करना ? जिनका चार बातों से संबंध टूट जाता है उनको किसी से बोलने की आवश्यकता नहीं रहती है ।
- स्वजनों से संबंध टूट जायें, - मित्र, स्नेही, परिचितों से संबंध कट जायें, -- वैभव-संपत्ति-दौलत से ममत्व टूट जायें, और - शरीर से ममत्व का संबंध नहीं रहे... ।
तो मौन रहना सरल बन सकता है । ये चारों बातें माधोजी में नहीं थी क्या ? चारों बातें थीं । वे इस दुनिया से अब किसी प्रकार का संबंध बाँधना नहीं चाहते थे । शरीर से भी ममत्व जोड़ना नहीं चाहते थे । जो टूट गया सो टूट गया... । ___ कहिए, आप लोग तो श्रावक हैं न ? समकित दृष्टि हैं न ? इन चार बातों में से कौन-सी बात है जीवन में ?
सभा में से : एक भी नहीं है !
महाराजश्री : फिर भी अभिमान कितना ? किस बात को लेकर अभिमान कर रहे हो ? इनमें से एक भी बात नहीं होने पर भी अभिमान कर सकते हो ? आप नहीं चाहते हो फिर भी स्वजन आप से मुँह मोड़ लें, तो आपके मन में क्या होगा ? आप नहीं चाहते, फिर भी मित्र वगैरह परिजन आप से संबंध तोड़ दें, तो क्या होगा ? आप नहीं चाहते फिर भी संपत्ति चली जायें, तो क्या
प्रस्तावना
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