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नहीं । वह सभी लोगों को एकटक देखता रहा । न हर्ष, न शोक, न मान, न अपमान, न मेरा, न तेरा, न सुख, न दुःख... ऐसी स्थिति हो गई माधोजी की। ___ एक-दो घंटे में सारे गाँव में लोगों को मालुम हो गया कि माधोजी को कोई भूत लग गया है । वह न बोलता है, न खाता है, न पीता है !' छोटा गाँव था पीपली । लोग जंतरमंतर करने लगे । दोरा-धागा करने लगे। पीर, जति, फकीर... भुआ आने लगे ! परंतु सभी के उपाय निष्फल जाने लगे। कुछ जति-लोगों ने सोचा कि माधोजी का यह सब ढोंग है । उसको वे लोग मारने लगे... लकड़ी से मारने लगे... फिर भी माधोजी बोलता नहीं है, खाना माँगता नहीं है । जो सामने आता है उसके सामने एकटक देखता रहता है । कोई उसके सामने थाली में रोटी रखता है तो दो टकडे खा लेता है, पानी पी लेता है । इसके अलावा लोगों के साथ वैसे जीता है कि जैसे किसी के साथ किसी प्रकार का संबंध ही न हो । निर्विकारी, निष्कामी बन कर जीता है । एक वर्ष तक ऐसा चलता रहा । किसी का कोई उपाय काम नहीं आया । उसकी पत्नी का भी मोह टूट गया । पत्नी घर में से जेवर, पैसे वगैरह लेकर अपने मायके चली गई । घर में अब अकेला माधोजी रह गया । आसपास के लोग माधोजी के घर में आते
और जो कुछ हाथ में आता वह ले जाते ! घर खाली हो गया । माधोजी के शरीर पर मात्र दो वस्त्र रह गये ।
जो लोग माधोजी के घर में से वस्तु उठाकर ले जाते और माधोजी के सामने देखते, माधोजी उसके सामने अट्टहास करते । जैसा पागल मनुष्य का हास्य होता है वैसा हास्य होता । जड़भरत का हास्य ! जैसा हास्य उनके गुरु-महंत का होता था, वैसा माधोजी का हास्य होता था। ___ लोग माधोजी के घर के द्वार उखाड़ कर ले गये । छप्पर तोड़ कर ले गये । घर की मात्र दीवारें खड़ी रह गई । माधोजी वैसी जगह में पड़े रहते थे। कोई दयावान पुरुष... कोई मित्र, स्नेही थाली में रोटी-सब्जी लाकर माधोजी के सामने रखते तो वे खा लेते और तालाब में से पानी पी लेते । ___ मध्यरात्रि के समय माधोजी बाहर आते और अट्टहास करते । गाँव में सोये हुए लोग जग जाते... | गाँव के बाहर आकर वे दूसरी बार अट्टहास करते और चलते जाते । तीन मील चल कर वे उस घंटीयाली तलावड़ी के किनारे पर जाते कि जहाँ उसके गुरु का मुकाम था। गुरुचरण से जो पृथ्वी पावन हुई थी । जहाँ पर माधोजी की मोहान्धता दूर हुई थी और समत्व की प्राप्ति हुई
प्रस्तावना
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