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कि माधोजी जैसा डाकू, जो कि सभी महा व्यसनों में फँसा हुआ था, वह संत के प्रभाव में आ गया। उसके हृदय पर संत का प्रभाव छा गया। संत के स्पर्श ने लोहे को सोना बना दिया। उस माधोजी का मोहावरण छिन्न हो गया । उसको अब संसार के किसी भी पदार्थ पर ममत्व नहीं रहा ।
इस घटना को लिखनेवाले थे अहमदाबाद मणीनगर के वैद्य जादवजी नरभेराम शास्त्री । शास्त्रीजी माधोजी से मिले थे । माधोजी का गाँव पींपली, शास्त्रीजी का भी गाँव था। शास्त्रीजी ने जो बातें लिखी हैं, अपने अनुभव लिखे हैं, वे अनुभव आपको बताऊँगा । मोह का आवरण टूटने पर माधोजी ने कैसी अपूर्व समता - समाधि पायी थी.... वह बताऊँगा । आज बस, इतना ही ।
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शान्त सुधारस : भाग १
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