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________________ उपाध्यायश्री विनयविजयजी शान्तसुधारस' ग्रंथ की चौथी एकत्व-भावना में कहते हैं : एकतां समतोपेता-मेनामात्मन् विभावय । लभस्व परमानन्दसंपदं नमिराजवत् ॥५॥ हे आत्मन, समत्वभाव के साथ तू आत्मा के एकत्व की अनुभूति कर । यों करके नमि राजर्षि की भाँति तू भी परम आनंद का खजाना प्राप्त कर सकेगा। मिथिला का राजा नमि को पाँच सौ रानियाँ थी। अपार राजरिद्धि का वह मालिक था। एक दिन उसके बदन में दाहज्वर पैदा हुआ। वैद्यों ने अनेकविध औषधोपचार किये, परंतु उसका दाहज्वर शान्त नहीं हुआ। शरीर पर चंदन का विलेपन करने के लिए उसकी सभी रानियाँ चंदन घिसने लगी । रानियों के हाथ पर अनेक कंगन थे । कंगनों के घर्षण से आवाज आती थी, ज्यादा आवाज आती थी। नमिराजा से सहन नहीं होती थी । उसको मालुम नहीं था कि यह आवाज रानियों के कंगनों का है । उसने कहा : यह आवाज बंद हो । रानियों ने तुरंत ही सौभाग्य का सूचक एक-एक कंगन रखकर शेष कंगन उतार दिये । आवाज बंद हो गई । राजा ने पूछा : अब आवाज कैसे बंद हो गई ? रानियों ने कहा : स्वामिनाथ, हमारे हाथ पर अनेक कंगन थे, इसलिए परस्पर घर्षण होता था, घर्षण में से आवाज पैदा होती थी। हमने सौभाग्य का एक-एक कंगन रखकर, शेष कंगन उतार दिये, इसलिए अब आवाज नहीं आती है। रानियों ने तो यह बात सहजभाव से कही थी, परंतु नमिराजा ने इस बात का आध्यात्मिक अर्थ किया । ‘अनेक में संघर्ष है, एक में शान्ति है । अनेक में दुःख है, एक में ही सुख है ! एकत्व और समत्व में ही शान्ति और सुख है। इसलिए मेरा दाहज्वर शान्त होने पर मैं इस संसार का त्याग करूँगा। अणगार बनूँगा। नमि राजर्षि व इन्द्र का संवाद : नमिराजा का शरीर निरोगी होता है । वे प्रत्येकबुद्ध बनते हैं। यानी किसी के भी उपदेश के बिना वे विरागी-विरक्त बनकर अणगार बनते हैं । मिथिला का, राजपरिवार का, राज्य-रिद्धि का त्याग कर चल देते हैं । तब देवराज इन्द्र अपने अवधिज्ञान से नमिराजा को देखते हैं । इन्द्र को आश्चर्य होता है ! नमिराजा का वैराग्य दुःखगर्भित है अथवा ज्ञानगर्भित है - यह जानने के लिए इन्द्र, ब्राह्मण का रूप कर, पृथ्वी पर आता है और नमि राजर्षि को रास्ते में मिलकर उनसे । एकत्व-भावना २६१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003661
Book TitleShant Sudharas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherVishvakalyan Prakashan Trust Mehsana
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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