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________________ 'त्रिकरण योग' यानी मन-वचन और काया। आत्मा का शुद्ध स्वरूप मनवचन-काया से समझना है । आत्मभाव और पुद्गल-भाव का यथार्थ भेद जानना शेर जैसी आत्मा पराधीन है : __ वैसे तो आत्मा, अपने शुद्ध स्वरूप में अनंतज्ञानी है । परंतु पुद्गल-भाव से आवृत्त है । आत्मा अनन्त शक्ति का स्वामी है, परंतु पुद्गल-भाव ने उसको कायर बना डाला है । श्री चिदानन्दजी कहते हैं : ज्ञान अनंत जीवनो निज गुण, ते पुद्गल आवरिया, जे अनंत शक्तिनो नायक, ते इण कायर करियो । आत्मा अपने मूल स्वरूप में अज्ञानी नहीं है, अनंत ज्ञानी है, कायर-अशक्त नहीं है, अनंत शक्तिवाली है। परंतु अनंत कर्म-पुद्गलों से आवृत्त है । कर्मपुद्गलों का आवरण काटना है । वह आवरण दूर होने पर मूल स्वरूप प्रगट होगा। जब तक कर्म-पुद्गलों का प्रभाव है, तब तक तो आत्मा को दुःख सहने ही पड़ेंगे ! चेतनकुं पुद्गलए निशदिन, नानाविध दुःख घाले, पण पिंजरगत नाहरनी परे, जोर कछु न चाले । शेर है, परंतु पिंजरे में है ! क्या करे ? आत्मा, शेर जैसी शक्तिशाली आत्मा, कर्मों के पिंजरे में बंद है । पुद्गल उसको विविध दुःख देते हैं । पाप-पुद्गल जीव को दुःखी करते रहते हैं । पुद्गल का पिंजरा तोड़ना ही होगा । कैसे भी कर के तोड़ना होगा । तप से तोड़ो, त्याग से तोड़ो, ज्ञान से तोड़ो... ध्यान से तोड़ो... शम-उपशम से तोड़ो... मार्दव-आर्जव से तोड़ो ! जो भी उपाय अपने से बन पड़े, उस उपाय से पुद्गल के पिंजरे को तोड़ो और शेर जैसी आत्मा को मुक्त करो। शेर होते हुए भी, पिंजरे में रहने का आदी हो गया है, उसको पुद्गल का संग अच्छा लगता है ! प्रिय लगता है ! जिस प्रकार रोगी मनुष्य कुपथ्य करता है, नहीं खाने का खाता है, नहीं पीने का पीता है और खुशियाँ मनाता है ! श्री चिदानन्दजी कहते हैं - इतने पर भी जो चेतन कुं, पुद्गलसंग सोहावे, रोगी नर जिम कुपथ करीने, मन में हर्षित थावे । कर्मों के पुद्गलों की कितनी परवशता हो गई है ? आत्मा अपने सभी श्रेष्ठ एकत्व-भावना २५१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003661
Book TitleShant Sudharas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherVishvakalyan Prakashan Trust Mehsana
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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