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इधर-उधर निगाहें फेंकी, पर कुछ दिखा नहीं । फिर भी रानी को पूछा :
वह यक्ष की प्रतिमा कहाँ है ?' कौन-सी ? जो सबेरे लायी थी वह ?'
'हाँ ।
वह मूर्ति तो वापस भिजवा दी। यों कहकर रानी ने मोहक हावभाव से राजा को गपशप में लगा दिया । चिकनी-चुपड़ी बातें करके राजा का ध्यान दूसरी ओर खींच लिया । ललितांग जिस कुए में पड़ा था, वह कुआ बहुत गहरा नहीं था । पर, दरअसल में वह गंदगी का कुआ था । कुए में पड़ा पड़ा ललितांग कांप रहा था। राजा तलाशते तलाशते यहाँ पर आ गया और मुझे देख लिया तो? तलवार से मेरा गला काट देगा। परंतु जब दो-तीन घंटे बीत गये, तब वह निर्भय बना । उसे रानी याद आयो । रानी ने मुझे उठाकर यहाँ इस कुए में फेंक दिया. कैसी स्वार्थी और नीच औरत है ? मेरे साथ कितना प्रेम दिखाया, कैसी मीठी मीठी बातें की...और जब उसका स्वार्थ पूरा हो गया तो उसने मेरी यह कदर्थना कर दी । यहाँ मैं जीऊँगा कैसे ? परंतु यदि मैं जिंदा इस कुए से बाहर निकलँगा तो फिर कभी भी इस तरह परायी औरत के साथ प्यार नहीं करूँगा । उसके सामने भी नहीं देखंगा।।
दूसरे दिन सबेरे रानी की दासी ने उस कुए में भोजन की पडिया बाँधकर डाली । ललितांग ने पुडिया खोलकर खा लिया और गटर का गंदा पानी पी लिया । मरता हुआ मनुष्य क्या नहीं करता ? यों कुछ दिन-कुछ महिने गुजरे, बारिश के दिन आये । जोरों का पानी गिरने लगा। खड्डे-कुए भर गये । ललितांग पानी के प्रवाह में बहता हुआ नगर के बाहर किले की खाई में जा पहुँचा। बहताबहता वह खाई के किनारे पर पहुँचा। बेहोश होकर पड़ा था वहाँ । शरीर उसका सड़ गया था। वहाँ से गुजर रही उसकी धावमाता ने उसे देखा । उसे पहचाना। तुरंत घर पर जाकर ललितांग के पिता समुद्रप्रिय को बोला। रात्रि के समय ललितांग को रथ में डालकर घर पर लाया गया। चिकित्सकों को बुलाकर उसके औषधोपचार करवाये । छह महीनों की लम्बी चिकित्सा के बाद वह स्वस्थ हुआ।
संसार के भ्रामक सुखों में फँसे सभी मनुष्य, ललितांग की भाँति विषयोपभोग में डूबे रहते हैं । विषयसुख ललितारानी के संग सा समझना। यह सुख शुरूआत में मधुर लगता है, पर अंत में बड़ा ही भयंकर होता है । परभावों को अपना समझ कर ममत्व बाँधना, कितना दुःखदायी होता है, इसका यह शास्त्रीय उदाहरण
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शान्त सुधारस : भाग १
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