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मोक्षमार्ग का ज्ञान देना शुरु किया ।
'संसार में सुख है, संसार स्वर्ग है... ऐसी भ्रान्तियों में भ्रान्त बने जीवों की भ्रान्तियों को मिटाने लगे । उनको करुणापूर्ण वाणी से समझाया
* संसार नगर नहीं है, स्वर्ग नहीं है, वन है, जंगल है । * संसार में निरंतर आश्रवों की वर्षा हो रही है ।
* संसार में सर्वत्र कर्मों की लताएँ फैली हुई हैं, और * संसार में सर्वत्र मोह का प्रगाढ़ अंधकार है ।
इसलिए संसार - वन से बाहर निकल जाओ । मुक्ति के मार्ग पर आ जाओ । मुक्ति के मार्ग पर चलते चलो। थको नहीं, अधीर मत बनो... हिंमत से आगे बढ़ते रहो । किसी लोभ में, लालच में मत फँसो । हम जैसे कहें वैसे करते रहो, चलते रहो । कष्ट और आपत्तियों से डरो नहीं । संकटों को सहते चलो |
जिनवाणी पर विश्वास करो :
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परमात्मा तीर्थंकरदेव के प्रति विश्वास होगा तो उनकी वाणी के ऊपर, उनके वचनों के ऊपर विश्वास होगा ही । भगवान महावीर स्वामी २४वें तीर्थंकर थे । उनके उपदेशों को उनके गणधरों ने सूत्रबद्ध किये थे । शिष्यपरंपरा से सूत्रबद्ध उपदेश आज २५०० वर्षों के बाद भी हमें प्राप्त हुए हैं। सभी उपदेश नहीं, कुछ उपदेश लुप्त हो गये, कुछ उपदेश सुरक्षित रह गये। आज हम उन उपदेशों को 'आगमसूत्र' कहते हैं । वैसे ४५ आगमसूत्र हैं । जैनशासन की एक बहुत अच्छी परंपरा रही है कि कोई भी प्रज्ञावंत ऋषि, मुनि... आचार्य... उपाध्याय ... मौलिक ग्रंथों की रचना करते हैं, वह ग्रंथरचना आगमसूत्र के अनुसार करते है । आगमसूत्र से विपरीत बात अपने ग्रंथ में नहीं आ जायें, वैसी सावधानी रखते हैं । उपाध्यायश्री विनयविजयजी वैसे प्राज्ञ पुरुष थे, आप्त पुरुष थे, उन्होंने जिनवचनों के अनुरूप, आगमसूत्रों से अविरुद्ध ऐसी 'शान्तसुधारस ग्रंथ की मौलिक रचना की है । इस दृष्टि से 'शान्तसुधारस' में जो वाणी बह रही है, वह जिनवाणी ही है । तीर्थंकर के ही वचन हैं । इसलिए इन वचनों पर विश्वास करना होगा । इस ग्रंथ की उपादेयता का स्वीकार करना होगा । उपाध्यायजी ने जिनवाणी की स्तुति की है - रम्या गिरः पान्तु वः ।' कह कर अपनी श्रद्धा अभिव्यक्त की है । 'जिनेश्वरों की भव्य रम्य वाणी आपकी रक्षा करो !'
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शान्त सुधारस : भाग १
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