________________
४. पग-पग पर परेशानी-पराभव । ५. संपत्ति से गर्व, दरिद्रता से दीनता-हीनता । ६. कर्मपरवशता । ७. हर जन्म में नया रूप । ८. संसार - रंगमंच : अभिनेता । ९. बचपन-यौवन-बुढ़ापा-मृत्यु । मोहशत्रु का सताना :
संसार के सभी दुःखों का मूल कारण है मोह । जो दुःखदायी होता है, उसको ही शत्र कहा जाता है। इसलिए मोह को शत्रु कहा गया है ! मोहशत्रु बड़ा खतरनाक शत्रु है ! क्योंकि वह प्रदर्शन करता है मित्रता का और काम करता है शत्रुता का । जिस मनुष्य के भीतर मोह का वर्चस्व होता है, वह कभी न कभी दूसरों के साथ शत्रुतापूर्ण व्यवहार करेगा ही । मोहासक्त मनुष्य कौन-सा बुरा कार्य नहीं करता है ? रानी सर्यकान्ता ने उसके पति राजा प्रदेशी के साथ जो दुर्व्यवहार किया था, किसकी वजह से ? रायपसेणीय सूत्र में बताया गया है कि बाहर से प्रेमभाव बतानेवाली सूर्यकान्ता ने अपने पति राजा प्रदेशी की हत्या कर डाली थी । मालवदेश के राजा मुंज की कुमौत किसकी वजह से हुई थी ? उसकी प्रेमिका मृणालिनी ने ही मोहवश धोखाबाजी की थी न ? ऐसी अनेक घटनाएँ इतिहास में और शास्त्रों में पढ़ने को मिलती हैं । संसार को भयाक्रान्त - डरावना समझना :
मोहासक्त जीव को चारों गतियों में दुःखों का भय रहता ही है । नरकगति में कैसे कैसे दुःख सहने पड़ते हैं, यह मैने कल बताया था । आज तिर्यंचगति के दुःख बताता हूँ । तिर्यंचगति में छोटे पशुओं को बड़े हिंसक पशुओं का भय सताता है । सिंह-बाघ वगैरह हिंसक पशु मृग, गाय, भेंस, इत्यादि पशुओं को मार डालते हैं और अपना भक्ष्य बना डालते हैं। शिकारी, हिंसक मनुष्य पशओं का शिकार करते हैं । इसलिए ऐसे शिकारी-हिंसक मनुष्यों से पशुओं को भय रहता है, वे डरते रहते हैं । घोर त्रास अनुभव करते हुए वे जीते हैं । तिर्यंचगति में जीव परस्पर भक्ष्य बनाते हैं ! माता अपनी संतान को भी भक्ष्य बना लेती है । पशुओं को, जानवरों को बहुत बड़े दुःख सहने पड़ते हैं । वे अभिव्यक्त नहीं कर पाते हैं ।
|
संसार भावना
२११
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org