SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 218
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ततो जन्म प्राप्य प्रचुरतरकष्टक्रमहतः । सुखाभासैर्यावत् स्पृशति कथमप्यर्तिविरतिं, जरा तावत्कायं कवलयति मृत्योः सहचरी ॥ ३ ॥ माता के अशुचिमय उदर में आकर, नौ-नौ महीनों तक कष्ट सहन किये, इसके बाद जन्म की पीड़ा सही। बड़े कष्टों को सहते हुए क्षणिक और कल्पित सुख, वैषयिक सुख मिलने पर लगा कि चलो, दुःखों से छुटकारा मिला, इतने तो मौत की परिचारिका सी जरावस्था-वृद्धावस्था आ धमकी और काया जर्जरित हो जाती है। कीमती मनुष्य-जीवन कौडी के मोल बिककर व्यर्थ पूरा हो जाता है । मनुष्य-जीवन के प्रमुख दुःख इस श्लोक में बताये गये हैं । पहला दुःख बताया है गर्भावस्था का । माता के अशुचिपूर्ण उदर में जीव नौ-नौ महीनों तक दुःख सहन करता है । दूसरा दुःख बताया है जन्म का । तीसरा दुःख बताया है यौवनकाल में होनेवाला विषयसुखों के संयोग-वियोग का । चौथा दुःख बताया वृद्धावस्था का और पाँचवा दुःख बताया है मृत्यु का । है एक गुजराती काव्य में इन दुःखों का वर्णन, बहुत हृदयस्पर्शी ढंग से किया गया है । सरल गुजराती भाषा है । समझ में आ जाये वैसा काव्य है । जिनवरप्रभु के सामने कविश्री न्यायसागरजी अपने को नट अभिनेता (एक्टर) बताकर सारी बात कह रहे हैं । सुनें - www हुँ तो नटवो थईने नाटक एवां नाच्यो हो जिनवरिया ! पहेलां नाच्यो पेटमां, माताना, बहुवार, घोर अंधारी कोटडी, त्यां कुण सुणे पोकार... त्यां माधुं नीचुं ने छाती ऊँची हो जिनवरिया ! हुतो. १. हाड - मांसनुं पींजरुं, ऊपर मढ़ीयो चाम, मल-मूत्र मांहे भर्यो में मान्युं सुखनुं धाम, त्यां नव-नव महिना ऊँधे मस्तक लटक्यो हो जिनवरिया ! २. क्रोड़ - क्रोड़ रोम-रोममां करी धगधगती सोय, भोंके जो कोई सामटी, कष्ट अष्ट गणुं होय । पछी माताने में जमनां द्वार देखाइयां हो जिनवरिया ! ३. बाँधी मुठी दोयमां हुँ लाव्यो पुण्य ने पाप, उंवा उंवा करी हुँ रडुं, जगमां हर्ष न माय, पछी पडदामांथी रंगभूमि पर आव्यो हो जिनवरिया ! ४. शान्त सुधारस : भाग १ २०२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003661
Book TitleShant Sudharas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherVishvakalyan Prakashan Trust Mehsana
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy