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________________ चाहता हूँ । यहाँ आये मुझे बहुत समय बीत गया है । मेरी पतिव्रता औरत मेरा इन्तजार करती होगी। बोलते-बोलते मेरा हृदय भर आया । मगधसेना ने मुझे कहा : 'प्राणनाथ, आप भले ही माने कि आपकी पत्नी पतिव्रता है, परंतु आप स्त्री का हृदय नहीं समझ सकते । फिर भी आपको जाना ही है तो चलें. मैं भी आपके साथ चलती हूँ । मुझे उस औरत का दुराचरण आपको बताना है । मैंने उसको मेरे साथ चलने की अनुमति दी । वह प्रसन्न हुई, राजा की अनुमति ले आई । हमने बहुत धन साथ ले लिया और उज्जयिनी की ओर प्रयाण कर दिया। - उज्जयिनी आने के बाद, हम नगरी के बाह्य उद्यान में रूके । रात्रि के समय मैं अकेला तलवार लेकर मेरे घर पहुँचा । भाग्य-योग से घर का द्वार खुला हुआ था । मैं धीरे से घर में गया । वहाँ मैंने भयंकर दृश्य देखा । मेरी पत्नी एक पुरुष के साथ सोयी हुई थी। मेरे क्रोध की कोई सीमा नहीं रही। मैंने उस पुरुष के गले पर तलवार का प्रहार कर दिया और उसको यमलोक पहुँचा दिया । मैं घर में ही छुपकर बैठ गया था । मेरी पत्नी जगी । उसने अपने प्रेमी को मरा हुआ देखा । वह शोकाकुल हो गई। परंतु उसने खड़े होकर उसके यार के मृतदेह को घर के पीछे ले जाकर, एक खड्डा खोदकर, उसमें गाड़ दिया । उसके ऊपर वेदिका बनाई, गोबर से लीपा और घर में आकर सो गई। _मैं घर में से निकलकर नगरी के बाहर उद्यान में पहुँचा । मैंने मगधसेना को सारी बात बता दी । मैंने कहा : 'हे प्रिये, तेरी कही हुई बात मैं नहीं मानता था, परंतु आज मैंने उसका व्यभिचार प्रत्यक्ष देखा । अब मुझे घर नहीं जाना है, चलो वापस राजगृही चलें। सुबह हमने राजगृही की ओर प्रयाण कर दिया। हम राजगृही आये । मगधसेना के साथ संसारसुख भोगते हुए कुछ वर्ष व्यतीत हो गये । एक दिन मेरे पिता की बीमारी के समाचार मिले । मैं अकेला ही उज्जयिनी गया। मेरे माता-पिता के पास गया। उनकी कुशलपृच्छा की । उनको नमन कर मैं मेरी पत्नी के पास गया । वह दूसरे घर में रहती थी । मेरी पत्नी ने हर्षविभोर होकर मेरा स्वागत किया। मुझे पलंग पर बिठाकर उसने पूछा : हे नाथ, आपको वापस लौटने में इतना सारा समय कैसे लग गया ?' मैंने कहा : 'तेरे लिए मृगमांस लेने मैं भटकता रहा, परंतु मृगमांस मिला नहीं, क्या करूँ ? फिर, तेरे प्रति अपूर्व स्नेह के कारण वापस घर पर आया । वह बोली : आप क्षेमकुशल वापस आ गये, वही मेरे लिये आनन्द की बात है। माता-पिता की बीमारी की वजह से मुझे वहाँ रहना आवश्यक था। मैं देखता | २०० 88888888888888888888888888888888888888888888888888888888 शान्त सुधारस : भाग १ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003661
Book TitleShant Sudharas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherVishvakalyan Prakashan Trust Mehsana
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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