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________________ तुरगरथेभनरावृत्तिकलितं दधतं बलमस्खलितम् । " हरति यमो नरपतिमपि दीनं मैनिक इव लघु मीनम् ॥ २ ॥ विनय विधीयतां रे श्रीजिनधर्मशरणम् । प्रविशति वज्रमये यदि सदने, तृणमथ घटयति वदने । तदपि न मुञ्चति हत समवर्ती, निर्दयपौरुषनतीं ॥ ३ ॥ विनय विधीयतां रे श्रीजिनधर्मशरणम् । विद्यामन्त्रमहौषधिसेवां, सृजतु वशीकृतदेवाम् । रसतु रसायनमुपचयकरणं, तदपि न मुञ्चति मरणम् ॥ ४ ॥ विनय विधीयतां रे श्रीजिनधर्मशरणम् ॥ मृत्यु के सामने अशरणता : उपाध्याय श्री विनयविजयजी जीवात्मा की अशरणता बताते हुए फरमाते हैं : 'जिस प्रकार मच्छीमार छोटी-छोटी मछलियों को सरलता से पकड़ लेता है, वैसे यमराज अश्व-रथ- हाथी और पदाति सैन्य से सज्ज एवं अप्रतिम बलवाले राजाओं को पकड़ लेता है । भले ही वे राजा यमराज के सामने दीनता करते हों । महाकाल से बचने के लिए कोई मनुष्य वज्र के घर में छिप जायं अथवा मुँह में तृण लेकर उस यमराज के सामने अपनी हार मान ले, फिर भी वह निर्दय यमराज किसी को छोड़ता नहीं है । देवों को आधीन करनेवाले मंत्र, विद्याएँ अथवा औषधियों का प्रयोग करें, आप के शरीर को पुष्ट करनेवाले रसायनों का सेवन करें, फिर भी मृत्यु तुम्हें छोड़नेवाली नहीं है । वृद्धावस्था के सामने जीव की अशरणता : मृत्यु के सामने जीव की अशरणता अनाथता का यह अद्भुत वर्णन है । वैसे वृद्धावस्था' के सामने भी जीव की कैसी अशरणता है, उसका वर्णन भी सुनें : वपुषि चिरं निरुणद्धि समीरं पतति जलधिपरतीरम् । शिरसि गिरेरधिरोहति तरसा, तदपि स जीर्यति जरसा ॥ ५ ॥ विनय विधीयतां रे श्रीजिनधर्मशरणम् । सृजतीमसितशिरोरुहललितं मनुजशिरः सितपलितम् । १६२ Jain Education International For Private & Personal Use Only शान्त सुधारस : भाग १ www.jainelibrary.org
SR No.003661
Book TitleShant Sudharas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherVishvakalyan Prakashan Trust Mehsana
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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