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शिकारी बन गया था । फिरता-फिरता उस प्रदेश में आया कि जहाँ श्रीकृष्ण सोये थे । दूर से जराकुमार ने देखा...जिस प्रकार कृष्ण सोये थे, जराकुमार ने मृग की कल्पना की...मृग समझकर उसने तीर चला दिया । कृष्ण के चरणतल में तीर लगा। तीर लगते ही कृष्ण बैठ गये और बोले : अरे, मैं निरपराधी हूँ...मुझे किसने तीर मारा? आज दिन तक कभी भी अपना परिचय दिये बिना मेरे पर प्रहार नहीं किया है । इसलिए जिसने भी मुझे तीर मारा है वह अपना नाम और गोत्र कहें । ___ यह प्रश्न वृक्षघटा में रहा हुआ जराकुमार सुनता है । हालाँकि उसे अपनी .. भूल महसूस हुई, 'मैंने मृग समझकर तीर मारा, परंतु यह तो मनुष्य है !' कृष्ण
का प्रश्न सुनकर वह बोला : मैं हरिवंशीय वसुदेव का पुत्र हूँ । जरादेवी मेरी माता है, मेरा नाम जराकुमार है । मैं श्रीकृष्ण का अग्रज हूँ। भगवंत नेमनाथ के वचन सुनकर मैं इस वन में आकर बारह वर्षों से रह रहा हूँ। मेरे हाथ से श्रीकृष्ण की मौत न हो...इस भावना से यहाँ रहता हूँ । बारह वर्षों में मैंने इस वन में किसी मनुष्य को नहीं देखा है। आप कौन हैं ?' ___ कृष्ण बोले : हे बंधु, तूं यहाँ आ जा । मैं ही तेरा अनुज कृष्ण हूँ। जिसके लिए वनवासी बना है । हे बंधु, तेरा बारह वर्ष का वनवास निरर्थक सिद्ध हुआ। यह सुनकर जराकुमार श्रीकृष्ण के पास आया । कृष्ण को देखते ही वह मूर्छित हो गया। मूर्छा दूर होने पर जराकुमार करुण रूदन करने लगा। बोला - 'मेरे प्राणप्रिय भ्राता, यह क्या हो गया ? आप यहाँ कैसे आ गये ? क्या द्वारिका जल गई? क्या यादवों का विनाश हो गया ? आपकी यह स्थिति देखते हुए मुझे लगता है कि भगवान नेमनाथ के वचन सिद्ध हुए हैं।
श्रीकृष्ण ने सारा वृत्तांत सुनाया । जराकुमार रोते-रोते बोला : मेरे भ्राता, मैंने शत्रु जैसा काम किया है...मृग समझकर मैंने तीर चला दिया...। आप जैसे भ्रातृवत्सल, विश्ववत्सल महापुरुष को मैंने मारा, मुझे नरक में भी जगह नहीं मिलेगी । आपकी रक्षा की भावना से मैंने वनवास लिया, परंतु मैं नहीं जानता था कि विधि ने मुझे ही आपकी मृत्यु का निमित्त बनाया है । हे पृथ्वी, तू मुझे जगह दे, मैं इसी शरीर से नरक में चला जाऊँ । क्योंकि मेरे लिए भ्रातृहत्या का दुःख, सभी दुःखों से बड़ा दुःख है । अब यहाँ मुझे नरक से भी ज्यादा दुःख लगता है । जिस समय भगवान नेमनाथ ने भविष्यकथन किया था, उसी समय मुझे आत्महत्या कर लेनी चाहिए थी।
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शान्त सुधारस : भाग १
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