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________________ हुई देखने के लिए भी समर्थ नहीं हूँ । चले, यहाँ से चल दें। अब अपन कहाँ चलेंगे ?' जरा-सा चिंतन करें इस घटना पर। अपने आपको असहाय - अशरण महसूस करनेवाले श्रीकृष्ण के भव्य भूतकाल पर एक दृष्टि डालें । कभी... कहीं भी कृष्ण हारे नहीं, बचपन से अभी तक कहीं भी वे निराश नहीं हुए। वे दूसरों के सहारा बने थे, आज वे स्वयं असहाय बने हैं । जिनके प्रति उनको अत्यंत स्नेह था, लगाव था, वैसे माता-पिता को वे बचा नहीं पाये । उनके देखते-देखते वे आग में भस्मीभूत हो गये । श्रीकृष्ण को शिशुपाल की सभा में देखो, श्रीकृष्ण को युद्ध के मेदान पर अर्जुन के रथ में देखो। पांडवों की राजसभा में देखो...। उनकी स्मितसभर मुखमुद्रा को देखो... उनकी अँगुलि पर घुमते हुए चक्ररत्न को देखो ! उनके विराट स्वरूप को देखो... और आज दीन-हीन बने... निराशा से घिरे हुए श्रीकृष्ण को देखो ! आज उनका प्रताप, प्रभाव, शौर्य, साहस, बुद्धि... कुछ भी नहीं बचा। दोनों भाई उस उद्यान से चल पड़े... नैर्ऋत्य दिशा में पांडवों की नगरी की ओर चल पड़े। श्रीकृष्ण की मौत : बलराम के साथ जंगलों में से चलते-चलते वे कौशाम्बी नगरी के बाह्य वन में पहुँचे । ग्रीष्मकाल था, श्रम था, शोक था और पुण्यक्षय था, श्रीकृष्ण अत्यधिक तृषातुर हुए । उन्होंने बलराम को कहा: 'बंधु, अति तृषा से मेरा मुँह सुख गया है...इस वृक्षघटावाले वन में भी अब मैं एक कदम भी चलने में समर्थ नहीं ।' बलराम ने कहा : 'मेरे भाई, मैं अभी पानी लेने जाता हूँ । तुम इस वृक्ष के नीचे विश्राम करो, परंतु अप्रमत्त होकर बैठना, मैं अभी वापस आता हूँ ।' I बलराम पानी लेने गये । कृष्ण अति श्रमित हो गये थे । वे एक पैर के ऊपर दूसरा पैर चढ़ाकर, पीला वस्त्र ओढ़कर वृक्ष के नीचे सो गये । अल्प क्षणों में ही सो गये । बलराम ने जाते-जाते भी कृष्ण को एक क्षण भी प्रमाद नहीं करने को कहा था । इतना ही नहीं, उन्होंने वनदेवियों से प्रार्थना की थी: 'हे वनदेवियाँ, मेरा यह अनुज बँधु आपकी शरण में है, इसलिए इस विश्ववत्सल पुरुष की रक्षा करना।' परंतु भवितव्यता को कौन मिथ्या कर सकता है ? उसी जंगल में बारह वर्षों से जराकुमार रहता था । उसने व्याघ्रचर्म पहना था । हाथ में धनुष्य-बाण था, अशरण भावना Jain Education International For Private & Personal Use Only १५३ www.jainelibrary.org
SR No.003661
Book TitleShant Sudharas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherVishvakalyan Prakashan Trust Mehsana
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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