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________________ से तपश्चर्या कर रहे थे और परमात्मा की भक्ति कर रहे थे । धर्म के प्रभाव से वह नगर में कुछ भी उपद्रव नहीं कर सका । मन में रोष भरा हुआ था। वैर की अग्निज्वाला प्रज्वलित थी । वह ग्यारह वर्ष तक द्वारिका में रहा । इन्तजार करता रहा कि कब नगरजन प्रमादी बनें और धर्मआराधना छोड़कर पापाचरण करने लगे ! ___ जब बारहवाँ वर्ष आया, तब लोगों ने सोचा कि अपने तप के प्रभाव से द्वैपायन अपनी प्रतिज्ञा से भ्रष्ट होकर भाग गया लगता है । नगर जला नहीं, अपन भी जीवित हैं...अब चिंता की बात नहीं है। ऐसा सोचकर लोग मदिरापान करने लगे, अभक्ष्य खाने लगे और स्वच्छंद बनकर पापाचरण करने लगे। ... द्वैपायन तो (अग्निकुमार देव) छिद्र देख ही रहा था । उसको अवसर मिल गया । वह नाचने लगा। उसने तत्काल कल्पांतकाल जैसे उत्पात द्वारिका में उत्पन्न किये । लोगों को यमराज का तांडवनृत्य दिखाई दिया । आकाश में उल्कापात होने लगे । पृथ्वी काँपने लगी । ग्रहों में से धूम्र छूटने लगा। अंगारवृष्टि होने लगी । सूर्यमंडल में छिद्र दिखाई दिया । सूर्य और चन्द्र का ग्रहण होने लगा । महलों में लगी हुई पाषाण की पुतलियाँ अट्टहास्य करने लगी । चित्रों के देव हसने लगे। नगर में बाघ-सिंह जैसे हिंसक पशु फिरने लगे । बलराम का हल नाम का शस्त्र और श्रीकृष्ण का चक्र वगैरह आयुध नष्ट हो गये । और द्वैपायन ने-अग्निकुमार देव ने द्वारिका में आग लगा दी। विशेष बातें आगे करूँगा, आज बस इतना ही । | अशरण भावना भावना र १४९ १४९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003661
Book TitleShant Sudharas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherVishvakalyan Prakashan Trust Mehsana
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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