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________________ शुरू किया। अत्यधिक शराब पीने से उन्मत्त तो थे ही...उन्होंने ऋषि को लातें मारी, मुष्ठीप्रहार किये, जमीन पर गिरा दिये । इतना मारा कि ऋषि मृतपायः हो गये । सभी यादवकुमार बाद में द्वारिका में अपने घरों में घुस गये ! । श्रीकृष्ण को यादवकुमारों का यह भयानक दुष्कृत्य मालुम हुआ । वे बहुत व्यथित हुए। उन्होंने सोचा : कुमारों ने वास्तव में यादवकुल का नाश करनेवाला दुष्कृत्य किया है । मुझे ऋषि के पास जाकर उनसे क्षमायाचना करनी ही होगी । ऋषि अत्यंत कोपायमान हुए होंगे । श्रीकृष्ण ने बड़े भाई बलराम को सारी बात बताई । वे भी दुःखी हुए । श्रीकृष्ण ने कहा : भैया, हमें द्वैपायन ऋषि के पास जाकर, उनसे क्षमायाचना करनी होगी। दोनों भाई द्वैपायन ऋषि के पास पहुँचे । उन्होंने द्वैपायन को देखा । द्वैपायन की आँखें क्रोध से लाल-लाल हो गई थी, जैसे दृष्टिविष सर्प की आँखें हो ! श्रीकृष्ण और बलराम ने ऋषि के चरणों में प्रणाम किया और विनय से उनके सामने बैठे। श्रीकृष्ण ने नम्रता से कहा : हे महर्षि, मेरे पुत्र मदिरापान से उन्मत्त थे, अंध बने थे। उन्होंने आपका बहुत बड़ा अपराध किया है । आपको बहुत कष्ट दिया है । वे अज्ञानी हैं, मोहान्ध हैं । आप ज्ञानी हैं, तपस्वी हैं, आप उनको क्षमा करें। आप क्रोध को शान्त करें...समता धारण करें । श्रीकृष्ण ने बहुत प्रार्थना की। द्वैपायन ने कहा : कृष्ण, तू मुझे उपदेश मत दें। जब तेरे पुत्रों ने मुझे मारा, मुझे मृतप्रायः कर दिया, उसी समय मैंने द्वारिका को, सभी यादवों के साथ जला देने का संकल्प किया है । तुम दोनों को जाने दूँगा द्वारिका के बाहर । इसलिए अब मुझे समझाने की आवश्यकता नहीं है । मैंने 'नियाणा' ही कर लिया है । नियाणा क्या होता है ? ___नियाणा का अर्थ जानते हो ? नहीं जानते हो। नियाणा बड़े उत्कृष्ट तपस्वी ही कर सकते है, सामान्य दुसरे नहीं । वैसे बडे तपस्वी लोग, किसी भी लालच से या रोष से अपनी तपश्चर्या का सौदा कर देते हैं । वे संकल्प करते हैं कि मेरी तपश्चर्या के फलस्वरूप मुझे ऐसी-ऐसी रिद्धि प्राप्त हो, सिद्धि प्राप्त हो ।' जैसे द्वैपायन ऋषि ने नियाणा किया कि मेरी तपश्चर्या के फलस्वरूप मैं द्वारिका को, सभी यादवों के साथ जला सकूँ...वैसी शक्ति मुझे प्राप्त हो !' * 'समरादित्यचरित्र' में अग्निशर्मा तापस ने नियाणा किया था कि “प्रति जन्म मैं गुणसेन राजा को मारनेवाला बनूँ !" | १४६ शान्त सुधारस : भाग । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003661
Book TitleShant Sudharas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherVishvakalyan Prakashan Trust Mehsana
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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