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________________ चलता है या हमारे उठाने से ? जहाज को छोड़ दें... देखें कि क्या होता है ?' सभी देवों ने जहाज को छोड़ दिया । जहाज लवणसमुद्र में डूबा ! चक्रवर्ती भी डूबा ! मरा और सातवीं नरक में चला गया । मरते समय उसके मन में देवों के प्रति घोर द्वेष पैदा हो गया होगा ! रौद्रध्यान आ गया होगा ! रौद्रध्यान में मरने से जीव को नरक में जाना पड़ता है । रौद्रध्यान में जीव नरकगति का आयुष्यकर्म बाँध लेता है । महत्त्वपूर्ण बात तो यह है कि सुभूम चक्रवर्ती का आयुष्य उस समय पूर्ण हो गया कि जब वह समुद्रमार्ग से जा रहा था ! जहाज वहन करनेवाले देव तो निमित्त मात्र थे ! आयुष्य पूर्ण होने पर उसकी मृत्यु निश्चित थी । चक्रवर्ती न स्वयं को बचा पाया, नहीं देव उसको मृत्यु से बचा पाये ! यह है जीवों की अशरणता । 'अशरणभावना' की सज्झाय में कवि ने आगे कहा है : द्वीपायन दही द्वारिका, बलवंत गोविंद राम रे, राखी न शक्या रे राजवी, मात-पिता-सुत धाम रे.... लोभे तस गई लाज रे... द्वारिका जल जाती है : महाभारतकालीन यह कथा बड़ी करुणान्तिका है । २२वें तीर्थंकर भगवान नेमनाथ के समय में घटी हुई यह घटना, त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र में आचार्य श्री हेमचन्द्रसूरिजी ने मार्मिक ढंग से लिखी है। बलदेव और वासुदेव जैसे अति बलवान शलाका पुरुष, उत्तम पुरुष भी महाकाल के सामने कैसे अशरण ... असहाय... बन जाते हैं, यह बात इस कहानी के माध्यम से बताना है । बड़ी रोमांचक और करुण (ट्रेजेडी) कहानी है यह । आप एकाग्र चित्त से सुनना और जीवों की महाकाल के सामने जो अशरणता है वह महसूस करना । १४४ - भगवान नेमिनाथ द्वारिका के बाह्य उद्यान में पधारे थे। समवसरण में बैठकर भगवंत ने धर्मोपदेश दिया । उपदेश पूर्ण होने पर श्रीकृष्ण ने विनय से भगवंत को पूछा : 'भगवन् इस द्वारिका का, यादवों का और मेरा नाश कैसे होगा ?' भगवंत ने कहा : 'कृष्ण, इन्द्रियविजेता और ब्रह्मचारी द्वैपायन ऋषि, द्वारिका को जला देंगे। उसमें तेरे माता-पिता और सभी यादव जलकर मरेंगे । मात्र तू और बलराम बचोगे तेरी मृत्यु तेरे भाई जराकुमार से होगी ।' I Jain Education International For Private & Personal Use Only शान्त सुधारस : भाग १ www.jainelibrary.org
SR No.003661
Book TitleShant Sudharas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherVishvakalyan Prakashan Trust Mehsana
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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