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________________ मृत्यु का भय भी होता है निश्चित रूप से । मृत्यु जब सामने दिखती है, तब जीवात्मा अपने आपको अशरण पाता है, असहाय पाता है ! मृत्यु के सामने सभी अशरण : रोगों से बचानेवाले, शत्रुओं से बचानेवाले, आपत्ति से बचानेवाले मिल सकते हैं इस संसार में । वो भी यदि पुण्यकर्म का उदय हो तो ! अन्यथा नहीं । परंतु मृत्यु से, यमराज से बचानेवाला कोई नहीं है । तुम भले ही बड़े सम्राट हो, चक्रवर्ती हो, देव हो या देवेन्द्र हो, तुम्हारे पास बड़ी-विराट सेना हो, विशाल भूमिसेना हो, समुद्री सेना हो या आकाशी सेना हो... तुम मृत्यु से नहीं बच सकते हो । यमराज तुम्हें उठाकर ले जायेगा ! तुम जाना नहीं चाहते होंगे, तो भी बलात् ले जायेगा ! तुम दीन-हीन बनकर चारों ओर देखते रहोगे और वह ले जायेगा। तुम्हारे स्नेही-स्वजन-मित्र... सभी देखते रह जायेंगे और यमराज तुम्हें ले जायेगा । यह होती है अशरणता । उपाध्यायश्री सकलचन्द्रजी कहते हैं : __ माता-पितादिक टगमग जोता, यम ले जनने ताणी रे, मरण थकी सुरपति नवि छूटे नवि छूटे इन्द्राणी रे... को नवि शरणं, को नवि शरणं । प्यारभरी माता पास में हो, वात्सल्यभरे पिता पास खड़े हों, प्रेमपूर्ण पत्नी पास खडी हो, अनेक स्वजन और मित्र खड़े हो...सब देखते रह जाते हैं और यमराज जीव को उड़ाकर ले जाता है । मृत्यु से कौन बचता है ? न देवेन्द्र बचता है, न देवरानी छूटती है ! मृत्यु से बचानेवाली कोई शरण नहीं है । मदोन्मत्त नहीं बनें : मृत्यु सामने खड़ी है : . . तावदेव मदविभ्रममाली, तावदेव गुणगौरवशाली । यावदक्षमकृतान्तकटाक्षर्नेक्षितो विशरणो नरकीटः ॥२॥ उपाध्यायश्री विनयविजयजी कहते हैं : हे मनुष्य, तब तक ही तूं मदोन्मत्त है और गुणगौरवशील है, जब तक तेरे पर दुर्जय यमराज का क्रूर दृष्टिपात नहीं हुआ है । यमराज का क्रूर दृष्टिपात होने पर तुझे कोई नहीं बचा सकेगा। यदि आप प्रतिपल मृत्यु को सामने रखते हो, तो कभी भी, किसी भी बात का अभिमान नहीं होगा । अथवा, जब कभी संपत्ति का, यौवन का, बुद्धि का अशरण भावना १४१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003661
Book TitleShant Sudharas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherVishvakalyan Prakashan Trust Mehsana
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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