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________________ ये षट्खण्डमहीमहीनतरसा निर्जित्य बभ्राजिरे, ये च स्वर्गभुजो भुजोर्जितमदा मेदुर्मुदा मेदुराः । तेऽपि क्रूरकृतान्तवक्त्ररदनैर्निर्दल्यमानाहठादत्राणाः शरणाय हा दशदिशः प्रेक्षन्त दीनाननाः ॥७॥ अशरण भावना का प्रारंभ करते हुए उपाध्याय श्री विनयविजयजी कहते हैं : अपने अतुल पराक्रम से समग्र पृथ्वी पर विजय पानेवाले सम्राट, चक्रवर्ती और अपनी अजेय शक्ति से उन्मत्त एवं अपूर्व हर्ष से सर्वदा आनन्दित रहनेवाले देव-देवेन्द्र, जब उनके ऊपर निर्दय यमराज बलात्कार करता है और अपने तीक्ष्ण दांतों से उनको चीर डालता है, तब वे सम्राट, चक्रवर्ती, देव और देवेन्द्र, दीनहीन बन, अशरण स्थिति में चारों ओर देखते रहते हैं, उनको कोई बचा नहीं सकता! मृत्यु सर्वोपरि : अनन्त जन्मों से जीवों के साथ असंख्य वासनाएँ जुड़ी हुई हैं । आहार की वासना, भय की वासना, मैथुन की वासना और परिग्रह की वासना । ये चार प्रमुख वासनाएँ हैं। ये वासनाएँ जीवों को दुःखी करती हैं। इसलिए परम करुणावंत ज्ञानीपुरुषों ने वासनाओं पर विजय पाने का, वासनाओं को नष्ट करने का उपदेश दिया । वासनाओं के ऊपर भावनाओं से विजय पा सकते हैं । वासनाओं के ऊपर विजय पाने का श्रेष्ठ उपाय है भावनाएँ। __चार प्रमुख वासनाओं में से एक है भय की वासना । जन्म से मृत्यु तक जीव कुछ भयों के साथ जीते हैं । प्रिय के वियोग का भय और अप्रिय के संयोग का भय ! ये दो मुख्य भय होते हैं । स्वजन-परिजन, संपत्ति-वैभव, शरीर वगैरह प्रिय पदार्थ होते हैं । ये चले न जायं, नष्ट न हो जायं, चोरी न हो जायं... इस बात को लेकर मनुष्य भयाक्रान्त रहता है । वैसे जो अप्रिय वस्तु होती है, अप्रिय बातें होती हैं - रोग-शोक, स्वजनवियोग, दुर्जन-संयोग, वृद्धत्व और मृत्यु... इनसे भी मनुष्य भयभीत रहता है । भय से बचने के लिए वह कोई रक्षा चाहता है, कोई शरण चाहता है । जो उसकी भय से रक्षा करता हो, उसकी वह शरण चाहता है । हाँ, दूसरे सभी भयों से बचानेवाले, शरण देनेवाले फिर भी मिल जाते हैं संसार में, परंतु मृत्यु से बचानेवाले कोई नहीं होते हैं संसार में ! मृत्यु अनिवार्य होती है जीवों के लिए, १४० शान्त सुधारस : भाग १ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003661
Book TitleShant Sudharas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherVishvakalyan Prakashan Trust Mehsana
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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