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________________ संन्यासी हो, जिसको चिदानन्द का प्रशमानन्द का उत्सव मनाना होता था वे रात्रि के समय में नगर के बाहर शून्य घरों में, खंडहरों में... स्मशान में चले जाते थे । उनको वहाँ एकान्त मिलता था । वे रातभर वहाँ कायोत्सर्ग ध्यान में यही परमानन्द का परमाह्लाद का, परम ज्योति का उत्सव मनाते थे । वे 'सोऽहम्... सोऽहम्... सोऽहम्...' के नाद से झूमते थे । वे सिद्धस्वरूप का तादात्म्य पाकर परमानन्द की अनुभूति करते थे । 1 ऐसे श्रावक भी होते थे । सुदर्शन वगैरह के दृष्टांत अपने शास्त्रों में, आगमों में पढ़ते हैं । मुनि, योगी, साधुओं के तो अनेक दृष्टांत पढ़ने को मिलते हैं वे निर्भय होते थे । वे इन्द्रियविजेता होते थे । वे वीर और धीर होते थे ! भीतर का उत्सव ऐसे सत्पुरुष ही मना सकते हैं । ऐसे सत्पुरुष, जिस प्रकार एकान्तप्रिय और मौनधारी होते है, वैसे वे सहजरूप से तपस्वी होते थे । बिना आहार -पानी वे कई दिनों तक अपनी आराधना में निरत रह सकते थे । लोकसंपर्क से वे दूर रह सकते थे । चिदानन्द की मस्ती में खाना- पीना... उनको याद भी आता नहीं होगा ! वे तो अमृतपान ही करते रहते थे । 'प्रशमरस' का अमृतपान ! योगीपुरुष कैसे होते हैं प्रश्न : आप कहते हैं वैसे योगीपुरुष कैसे होते हैं ? उत्तर : आत्मध्यान करनेवाले और परमानंद का उत्सव मनानेवाले योगी १२ योग्यतावाले चाहिए । सुनें, वे योग्यताएँ बताता हूँ । ७. लययोग में तत्पर, १. स्थिर बुद्धिवाला, २. स्वाधीन, ८. वीर्यवान्, ३. विशाल हृदयवाला, ४. क्षमाशील, ५. वीर, ६. गुरुचरणपूजक, ऐसा साधक ही आत्मध्यान करने योग्य और अधिकारी होता है। ऐसा योगीपुरुष यदि अपनी आत्मा की, 'जिनस्वरूप' बनकर आराधना करते हैं, वे 'जिनस्वरूप' बन जाते हैं । महायोगी श्री आनंदघनजी ने कहा है : 'जिनस्वरूप थइ जिन आराधे अनित्य भावना ९. दयावान्, १०. सत्यवादी, Jain Education International ११. श्रद्धावान्, १२. योगाभ्यास में तत्पर । For Private & Personal Use Only १३५ www.jainelibrary.org
SR No.003661
Book TitleShant Sudharas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherVishvakalyan Prakashan Trust Mehsana
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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