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सेक्स मनुष्य को भोगता है । मनुष्य को नचाता है । मनुष्य जैसे कि 'सेक्स' के कारागार में कैद हो गया है । कारागार को इतना सुंदर बना दिया गया है कि मनुष्य को कैद होने का एहसास हो न हो ! इस कारावास को लोहे की सलारवाएँ नहीं होती, कैदी के हाथ-पाँव में बेड़ी नहीं होती, परंतु इन्द्रिय सुख की भरपूर सुविधाओं के साथ मनुष्य 'सेक्स के पंजे में नजरकैद है ! अद्रश्य जंजीरों से बंधा हुआ है । उपसंहार :
आज 'कुथितमन्मथविकारम्' के विषय में विस्तार से इसलिए चर्चा की है, क्यों कि आज स्कूल-कोलेजों में 'मानस शास्त्र' के नाम, काम विकारों को बढ़ाया दिया जा रहा है । तरूण और युवान गलत मार्ग पर भटक रहे हैं । इस में T.V. और सिनेमा ने तो सर्वनाश करने का निर्णय कर लिया हो, ऐसा लगता है । बाल, तरूण, युवक सभी कामवासना से बचो - यही मंगलकामना । आज बस, इतना ही
और
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शान्त सुधारस : भाग १
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