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________________ माता को पुत्र ज्यादा प्रिय होता है, उस में भी यह कामवृत्ति और विजातीय आकर्षण ही कारण होता है 1 फ्रोइड़ कहता है छोटे बच्चों में भी जातीय भूख होती है ! इसलिए तो वह अपने निकट से निकट स्त्री-माता की ओर यौन आकर्षण का अनुभव करता है !' फ्रोइड़ के ऐसे सिद्धान्त का खंडन करते हुए, प्रसिद्ध मानसशास्त्री एरिक फ्रोम' ने कहा है : 'फ्रोइड एक ओर माता के स्नेह का, मनुष्य की इच्छा का स्वीकार करता है, तो दूसरी ओर इनकार कर देता है ! माता और पुत्र की स्नेह-वृत्ति को यौन वृत्ति बताकर वह सच्चे अर्थ का इनकार कर देता है । फ्रोइड़ माता को उसके पवित्र स्थान से पदभ्रष्ट कर, उसकी जातीय वासना का एक साधन बना देता है, वेश्या में बदल देता है !' फ्रोइड़ द्रढ़ता से मानता था कि प्रेम कामवृत्तिजन्य विजातीय संबंध ही होता है । स्त्री - पुरूष की पारस्परिक द्रष्टि भी काममूलक ही होती है ।' यह तो एक अत्यंत अनर्थकारी और भयानक तत्त्वज्ञान बन जाता है । इस मान्यता के अनुसार तो स्त्री-पुरूष के बीच नर-नारी के अलावा दूसरा कोई संबंध संभवित ही नहीं रहता ! नर-नारी के बीच यौन संबंध के अलावा दूसरी सभी संबंध असंभव ही बन जाते हैं । यह मान्यता फ्रोइड़ की, संकीर्ण, नादान और अविचारी है । संपूर्ण अपरिपक्व है । संस्कृति की विध्वंसक है । फ्रोइड़ के विषय में एक बार विनोबाजी ने कहा था अभी अभी फ्रोइड़ का शास्त्र चला है कि कामवासना को दबाना नहीं चाहिए ! यह बात समझ में नहीं आती । हम यदि वासना को नहीं दबायें तो क्या हम ना से दब जायें ? अपनी वासना को मनुष्य समझें और उसका शमन - दमन करें, वही योग्य है । कामवृत्ति के दमन से मानसिक अस्वस्थता पैदा होती हैं, यह बात बहुत प्रचलित हो गई है, परंतु कामवृत्ति को अमर्याद रूप से बढ़ने देना भी मनोरूग्णता काही प्रकार है । ज्ञानी महर्षि ही नहीं, गणमान्य मनोविश्लेषक एरिक फ्रोम जैसे भी कहते हैं : 1 Jain Education International — 'फ्रोइड़ के नाम से ऐसा मनाया जाता है कि यदि तुम अपनी यौन वृत्तिओं को दबा कर रक्खोगे तो उस से मानसिक अस्वस्थता पैदा होगी । इस पश्चिमी सभ्यता में ऐसी मान्यता प्रचलित बनी है कि 'तुम्हारी हर इच्छा को तूर्त ही संतुष्ट ११२ शान्त सुधारस : भाग १ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003661
Book TitleShant Sudharas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherVishvakalyan Prakashan Trust Mehsana
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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