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________________ घड़पण कोणे मोकल्युं ? जाय, गति भांगे तुं आवतां रे, उद्यम उठी रे दांतड़ला पण खरी पड़े रे, लार पड़े मुखमांय..........घड़पण. बल भांगे आंखो तणुं रे, श्रवणे सुण्युं नवि जाय, तुज आवे अवगुण घणा रे, वली धोली होय रोमराय .. घड़पण. केड़ दुःखे, गुड़ा रहे रे, मुखमां श्वास न माय, गाले पड़े करचली रे रुप शरीरनुं जाय... रे.... जीभलड़ी पण लड़थड़े रे, आण न माने कोय, घेर सहुने अलखामणो रे, सार न पूछे कोय.... दिकरा तो नासी गया रे, बहुओ दिये रे गाल, दिकरी नावे ढुंकड़ी रे, सबल पड़यो छे जंजाल... काने तो धाको पडी रे, सांभले नहींय लगार, आँखे तो छाया वली रे देखी शके न लगार............. उंबरो तो डुंगर थयो रे, पोल थई परदेश, गोली तो गंगा थई रे, तमे जुओ जराना वेश... घड़पणमां व्हाली लापशी, घडपणमां व्हाली भींत, घड़पणमां व्हाली लाकड़ी, तुमे जुओ घड़पणनी रीत... घड़पण. घड़पण तुं अकह्यागरुं, अण तेड़युं म आवीश, जोबनीयुं जग वहालु रे, जतन हुं तास करीश... कोई न वंछे तुजने रे, तुं तो दूर वसाय, विनयविजय उवज्झायनो रुपविजय गुण गाय... घड़पण. यह वर्णन वृद्धावस्था का है। ऐसी अवस्था में भी कामवासना प्रबल हो सकती • घड़पण. . घड़पण. है । और नपुंसक वेद । पुरूष को पुरूष वेद १०८ - Jain Education International - . घड़पण. • घड़पण. For Private & Personal Use Only ********* कामवासना का उद्भव स्थान : कामवासना (सेक्सीवृत्ति) चारों गति के जीवों में होती है, परंतु सब से ज्यादा कामवासना मनुष्य को होती है ! कामवासना जाग्रत होती है, मोहनीय कर्म से । मोहनीय कर्म के अंतर्गत तीन वेद-कर्म होते हैं। पुरूष वेद, स्त्री वेद ..... ....... .घड़पण. घड़पण. ...... मोहनीय कर्म का उदय होता है तब स्त्री के प्रति शान्त सुधारस : भाग १ www.jainelibrary.org
SR No.003661
Book TitleShant Sudharas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherVishvakalyan Prakashan Trust Mehsana
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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