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________________ पश्यतामेव नश्यति सहासं, एतदनुहरति संसारस्पं रया ज्जलदजलबालिका रुचि विलासम् ॥२॥ देखो, सोचो, वैषयिक सुखों का संबंध क्षणभंगुर है । चकमा देकर, छलना कर वह संबंध चला जाता है । इस संसार की माया बिजली की चमक जैसी चंचल होती है। प्रबुद्ध मनुष्य की यौवन के प्रति द्रष्टि : सामान्य मनुष्य, अबुध मनुष्य विषयसुखों को भोगने का अच्छा समय यौवन काल को समझता है ! यौवनकाल में पाँचों इन्द्रियों के भरपूर वैषयिक सुख भोगे जा सकते है -' ऐसी द्रढ़ मान्यता होती है । इस में भी स्त्री-पुरुष का संगमसुख ही केन्द्र में होता है । यौवन के प्रारंभ में ही सेक्स की वृत्ति जाग्रत होती है । वह वृत्ति, पुरूष को स्त्री की ओर और स्त्री को पुरूष की ओर आकृष्ट करती है । युवावस्था में स्त्री-पुरूषों के भीतर विषय वासना का आवेग प्रबल होता है । उस आवेग पर कंट्रोल करना, संयम रखना, बहुत कठिन काम होता है। इसलिए वे यौवन को ही अनित्य क्षणभंगुर कुत्ते की पूँछ जैसा वक्र बताकर, समझाकर, यौवन के उन्माद को शान्त करने का उपाय करते हैं ! वे कहते हैं : हन्त हतयौवनं पुच्छमिव शौवनं कुटिलमति तदपि लघु द्रष्टनष्टम् । तेन बत परवशाः परवशाहतधियः कटुकमिह किं न कलयन्ति कष्टम् ? ॥३॥ सच, कुत्ते की पूँछ जैसा कुटिल-वक्र है यौवन ! देखते ही देखते वह (यौवन) नष्ट हो जाता है । यौवन के सेक्सी आवेग में पुरूष स्त्री को परवश हो जाता है, उसकी बुद्धि कुंठित हो जाती है...वह विषयों के उपभोग (सेक्स) की कटुता... उसके दुःखपूर्ण परिणाम को नहीं समझ पाता है ? उपाध्यायजी को आश्चर्य होता है ! परंतु यौवन की यह वास्तविकता है । यौवन में सेक्सी आवेग उतना प्रबल होता है कि जो बुद्धिमानों की, धार्मिकों की बुद्धि को भी कुंठित कर देता है । जवानी परिणामों का विचार करने प्रायः सक्षम नहीं होती है । वास्तविकता के विचार भी, उन्मत्त यौवनकाल में करना असंभव सा होता है। | अनित्य भावना १०३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003661
Book TitleShant Sudharas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherVishvakalyan Prakashan Trust Mehsana
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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