________________
दुःखी नहीं हूँ, आप भी दुःखी नहीं हो । * कोई आश्वासन देते हुए कहता है : आपको व्यापार में बहुत बड़ा नुकसान
आया... करोड़-दो करोड़ रूपयों का नुकसान हुआ ऐसा सुना है, सुनकर दुःख हुआ।
वह कहता है : आप की सहानुभूति के लिए आभार ! वैसे मैंने संपत्ति को मेरी मानी ही नहीं थी । संपत्ति को सदैव चंचल, अनित्य मानता रहा हूँ, इसलिए मैं संपत्ति जाने पर भी स्वस्थ हूँ, प्रसन्नचित्त हूँ। मुझे दुःख नहीं है ! * कोई सहानुभूति जताता हुआ कहता है : मुझे जानकर बड़ा दुःख हुआ कि
आप को अकेले छोड़कर लड़के अलग हो गये । वृद्धावस्था के प्रारंभ में परिवार से दूर रहना बड़ा दुःखदायी होता है !
वह कहता है : मित्र, स्वजनों के संबंध मैंने अनित्य ही माना था और मानता हूँ ! जैसे जलयान में अथवा वायुयान में अनेक मुसाफिर इकट्ठे होते हैं, जब अपनी अपनी जगह आती है, तब मुसाफिर उतर जाते हैं, चल देते है ! हम भी सभी भवयात्रा के मुसाफिर हैं ! मुसाफिरों का संबंध स्थायी नहीं रहता, क्षणिक होता है... अल्प कालीन होता है ! पुत्रों का, पत्नी का, भाई-बहनों के संबंध वैसे अनित्य होते हैं, वे चले गये, मुझे कोई दुःख नहीं है । मैंने संबंधों को कभी स्थायी नहीं माने । मैने स्वजनों से ममत्व नहीं बांधा ! इसलिए मुझे कोई दुःख नहीं है। * कोई आकर दुःख व्यक्त करता है : आपने जिस मित्र को बहुत सहायता दी
थी, गिरे हुए को उठाया था, मैं जानता हूँ, उसने आप को ही धोखा दिया... आप को ही गिराने की चेष्टा की... जानकर बहुत दुःख हुआ। वह कहता है : मेरे दोस्त, मेरे बाह्य व्यवहार से तुमने मान लिया था कि उसको मैं मेरा मित्र मानता था, उसके साथ मेरा लगाव था ! नहीं, उसको मैने सहायता की थी मात्र करूणा से, उसको ऊँचा उठाने का काम किया था, एक साधर्मिक समझ कर ! परंतु मैने कभी उसके प्रति-उपकार की अपेक्षा नहीं रखी थी और जैसी तुम समझते हो, वैसी मैत्री का संबंध भी नहीं जोड़ा था । मेरी मैत्री तो संसार के सभी जीवों के साथ है । वैसे उसने मुझे धोखा नहीं दिया है, धोखा देनेवाले मेरे कर्म ही हैं !
वैसे उसने धोखा दिया, तो भी क्या हो गया ? वैषयिक सुख चले गये न ? मैने वैषयिक सुखों को क्षणभंगुर माने हैं ! __ पश्य भंगुरमिदं विषयसुखसौहृदं
शान्त सुधारस : भाग १
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org