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________________ तूने मात्र खाने का काम किया, मुसाफरी लंबी है... तूने साथ में पाथेय नहीं लिया ? ( रास्ते में क्या खायेगा ? ) - कितना सोचा ? मनुष्य जन्म को व्यर्थ गँवाया ? अभी तक नहीं जागा भीतर में ? हे चेतन ! इतना सुनकर जाग जा ! तेरे घट में ज्ञानानन्द भर जायेगा ! स्वजन - परिजनों में परिवर्तन : जिस प्रकार शरीर की अवस्थायें परिवर्तनशील हैं, वैसे स्वजन - परिजन भी परिवर्तनशील होते हैं । कुछ उदाहरण से समझाता हूँ । बच्चा छोटा होता है तब माता-पिता को प्रिय होता है, जब वह बड़ा होता है और माता-पिता का कहा नहीं मानता है, माता-पिता की सेवा नहीं करता है तब उसी लड़के के प्रति माता-पिता रोष करते हैं I जिस लड़के को माता-पिता के प्रति प्रेम होता है, शादी के बाद प्रायः मातापिता के प्रति प्रेम नहीं रहता । मनमुटाव, आपस में झगड़ा होता है और लड़का माता-पिता से अलग हो जाता है । पति-पत्नी के बीच प्रारंभ काल में प्रेम होता है, बाद में आपस में प्रायः रोजाना क्लेश... अनबन... झगड़ा शुरू हो जाता है । दो मित्रों के बीच जब स्वार्थ आ जाता है तब प्रेम की जगह शत्रुता आ जाती है । स्वजन परिजनों का स्नेह प्रायः स्वार्थजन्य होता है । जब तक एक दूसरे के स्वार्थ पुष्ट होते हैं तब तक प्रेम रहता है, जब स्वार्थपूर्ति नहीं होती है तब स्वजन - परिजन बदल जाते हैं । शत्रुतापूर्ण व्यवहार करते हैं । - स्वजन - परिजनों के संबंध ऐसे परिवर्तनशील होते हुए जानते है, फिर भी उनके प्रति मूढ़ मन आसक्त रहता हैं । उनका ममत्व टूटता नहीं हैं । एक वृद्धाश्रम में हम गये थे । वृद्धाश्रम में उस समय मात्र ५-७ वृद्ध पुरूष अनित्य भावना Jain Education International For Private & Personal Use Only ९९ www.jainelibrary.org
SR No.003661
Book TitleShant Sudharas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherVishvakalyan Prakashan Trust Mehsana
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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