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________________ सूर्योदय से सूर्यास्त तक जड़-चेतन पदार्थों में जो परिवर्तन आता है, वह परिवर्तन की प्रक्रिया को उपाध्यायजी ने देखी है । परिवर्तन दो प्रकार के होते हैं : द्रव्यात्मक और भावात्मक । परिवर्तन : द्रव्यापक और भावात्मक : - सुबह पुष्प खिलता है शाम को कुम्हला जाता है, - सुबह का स्नान शरीर शाम को गंदा हो जाता है, - सुबह में जो वस्त्र सुंदर दिखते हैं, शाम को मैले दिखते हैं, - सुबह का प्रिय भोजन, शाम को अप्रिय लगता है... ये सब द्रव्यात्मक परिवर्तन कहे जाते हैं। - सुबह में प्रिय शब्द सुनानेवाले स्वजन, शाम को अप्रिय शब्दों की वर्षा करते - सुबह में जिन के प्रति स्नेह होता है, शाम को उनके प्रति द्वेष हो जाता है। सुबह में जिन के प्रति दुर्भाव होता है, शाम को उनके प्रति सद्भाव पैदा हो जाता है ! ये सब भावात्मक परिवर्तन कहे जाते हैं। जिन का रूप, रस और गंध बदलता रहता है और जिन का राग-द्वेष और मोह आदि भाव बदलते रहते हैं... ऐसे जड़ चेतन पदार्थों के प्रति प्रेम नहीं होना चाहिए। प्रेम परिवर्तनशील पदार्थ के प्रति नहीं होना चाहिए, शाश्वत् के साथ प्रेम होना चाहिए । अनित्य - परिवर्तनशील पदार्थ के साथ प्रेम टिकता नहीं है, टूट जाता है । शाश्वत् के साथ किया हुआ प्रेम टूटता नहीं है ! इसीलिए परमात्मा से प्रेम करना है ! क्योंकि परमात्मा शाश्वत् है ! परंतु वासना के प्रेत से आहत मन, अनित्य और परिवर्तनशील पदार्थों के साथ ही प्रेम करता है ! ऐसे मन को कैसे समझाना ? । ___ उपाध्यायजीने चेतः प्रेतहतं कहा है । प्रेत यानी भूत, प्रेत यानी व्यंतर ! भूतप्रेत कहते हैं न ? जिस को भूत-प्रेत लग जाता है वह विवेकशून्य व्यवहार करता है। उसमें स्वयं की समझदारी नहीं रहती है । ज्यादातर, भूत-प्रेत, निर्बल और चंचल चित्तवालों को ही जल्दी लगते हैं । उपाध्यायजी को शंका हो गई कि क्या मेरे चित्त को भूत-प्रेत लग गया है ? अन्यथा प्रत्यक्ष परिवर्तन पानेवाले पदार्थों के प्रति मेरा मन प्रेम क्यों करता है ? | ९६ शान्त सुधारस : भाग १ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003661
Book TitleShant Sudharas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherVishvakalyan Prakashan Trust Mehsana
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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