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साग्रेपि योजनशते, पूर्वोत्पन्ना गदाम्बुदाः । यदञ्जसा विलीयन्ते, त्वद्विहारानिलोमिभिः ॥४॥
आपना विहाररुपी पवननी लहेरीओथी सवासो (१२५) योजनमा पूर्वे उत्पन्न थयेला रोगरूपी वादळाओ तत्काल अदृश्य थइ जाय छे. ४
नाविर्भवन्ति यद्भूमौ, मूषकाः शलभाः शुकाः । क्षणेन क्षितिपक्षिप्ता, अनीतय इवेतयः ॥५॥
राजाए दूर करी दीधेली अनीतिनी जेम भूमि उपर उंदर, तीड अने शुको विगेरे धान्यने नुकशान करनारा उपद्रवो ज्यां आप विचरो छो त्यां तत्काळ दूर थइ जाय छे. ५
स्त्रीक्षेत्रपद्रादिभवो, यद्वैराग्निः प्रशाम्यति । त्वत्कृपापुष्करावर्त-वर्षादिव भुवस्तले
॥६॥
आपनी कृपारूप पुष्करावर्त मेघनी वृष्टिथी ज होय तेम ज्यां आप चरण धरो छो त्यां स्त्री, क्षेत्र अने सीमाडादिकथी उत्पन्न थयेलो विरोधरूपी अग्नि तमाम शमी जाय छे. ६
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