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________________ दशवैकालिके चतुर्थाध्ययनम् । जेमनुं एवा जीव ए षडनिकायना जीव जाणवा. अहीं प्रथम पृथ्वीकाय, वीजा अप्काय, त्रीजा तेउकाय इत्यादि जे क्रम राख्यो बे, तेनुं कारण एम डे केः--सर्वप्राणिमात्रनो आधार पृथ्वी बे, माटे प्रथम पृथ्वीकायना जीव कह्या. ते पृथ्वीने आधारें उदक रहे बे, माटे आधाराधेयत्नावसंबंधथी - पृथ्वीकाय पनी बीजा अप्कायना जीव कह्या. ते उदकनुं प्रतिपदीनूत तेज बे माटे प्रतियोगिनावसंबंधथी अप्काय पड़ी त्रीजा तेजस्काय कह्या. ते तेजनो उपष्टंजक (जीववानुं साधन) वायु डे, माटे उपष्टंनकतालक्षण संबंधथी तेजस्काय कह्या, पड़ी चोथा वायुकाय जीव कह्या. ते वायुनुं ज्ञान, वृद तथा लताना चलनवलनादिकथी थाय बे, ते माटे वायुकाय पली पांचमा वनस्पतिकाय जीव कह्या. ते वनस्पतिकायने उपडव करनार त्रसकाय बे,माटे वनस्पतिकाय पठी हा त्रसकाय जीव कह्या. हवे उपर जे षड्जीवनिकाय कह्या, तेमां कांइ पण संशय अथवा विरोध नहीं श्राववो जोश्ये, माटे फरी तेज अर्थनुं स्पष्टीकरण करे . पुढ वित्ति ( पुढवी के०) पृथ्वी जे जे ते (चित्तमंतमकाया के०) चित्तवती आख्याता, जेने चित्त एटले जीवलक्षण चैतन्य तेने चित्तवती कहिये, अर्थात् सचित्त एवी तीर्थकरादिकें याख्याता एटले कहेली . वली ते पृथ्वी केवी ने तो के (अणेगजीवा के०) अनेकजीवा एटले अनेक बे जीव जेमां एवी . अर्थात् ए पृथ्वीकायमां अनेक जीवो ने, अर्थात् एक नथी. बली ते केवी ने तो के, (पुढोसत्ता के) पृथक्सत्वा, एटले अंगुलना असंख्यातमा नाग प्रमाण अवगाहनामां रहेला अनेक जीवो पृथक पृथक् जेमां के एवी पृथ्वी जे. एबुं सांजलतांज शिष्य साशंक थश्ने पूबे डे केः-हे गुरो! जो जीवपिंडरूप पृथ्वी बे, तो ते पृथ्वीउपर साधु जो मलोत्सर्गादि क्रिया करे, तो अवश्य पृथ्वीकायनो अतिपात थायज, अने मलोत्सर्गादि किया तो पृथ्वीउपर कस्यावगर बीजो कोश् उपायज नश्री. अने एम ज्यारें थाय त्यारे साधुथी अहिंसकपणे रहेवायज नहीं,अने प्राणातिपातविरमणरूप जे साधुनो प्रधान धर्म के तेनो वंध्यापुत्रनी परें असंभव प्राप्त थयो ? ए शंकाना उत्तरमा सूत्रकार कहे . अन्नबत्ति । (अन्नब सबपरिणएणं के०) अन्यत्र शस्त्रपरिणतायाः एटले शस्त्रेकरी परिणाम पामेलीजे पृथ्वी ते विनानी बीजी पृथ्वी बे, ते सचित्त बे, ते सचित्त पृथ्वीनो अतिपात करवो नहीं. अर्थात् शस्त्रपरिणत जे पृथ्वी ले ते अचित्त होवाथी तेनेविषे मूत्रोत्सर्गादि करवामां हिंसादोष नथी, वीजी पृथ्वीउपर करवाथी हिंसादोष , तेमाटे साधुनुं अहिंसकपणुं जे डे ते जतुं नथी. हवे शस्त्र शब्दनो अर्थ कहियें बिये. जे जेनो नाश करे ,ते तेनुं शस्त्र जाणवू. जेम लौकिकमां शरीरनुं शस्त्र खङ्गादिक प्रसिक . अहीं पृथ्वीना शस्त्रनो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003659
Book TitleAgam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Nyayatirth
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages728
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size29 MB
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