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________________ (१६) २४ रत्नकरण्डश्श्रावकाचार – श्रीमतस्वामिसमन्तभद्रकृत मूल और आचार्य प्रभाचन्द्रकृत संस्कृतटीक, साथ ही लगभग ३०० पृष्टकी विस्तृत भूमिका ( हिन्दी में ) है, जिसमें स्वामी समन्तभद्रका जीवनचरित और मूल तथा टीकाग्रन्थकी निष्पक्ष तथा मार्मिक समालोचना की गई है। भूमिका लेखक बाबू जुगलकिशोरजी मुख्तार हैं इतिहासके विशेषज्ञ हैं । सम्पूर्ण ग्रन्थकी पृष्ठसंख्या २४० । मू०२) २५ पंचसंग्रह – माथुर संघ के आचार्य श्री अभितगतिसूरिकृत । इसमें गोम्मटसारका सम्पूर्ण विषय संस्कृत में श्लोकबद्ध लिखा गया है । प्राकृत नहीं जाननेवालों के लिए बहुत उपयोगी है । पृष्ठसंख्या २४० | मू०|- ) २६ लाटीसंहिता – पण्डित राजमल्लजीकृत श्रावकाचारका अपूर्व ग्रन्थ । पृष्ठसंख्या १३२ । मू०|) २७ पुरुदेवचम्पू – कविवर्य अर्हद्दासकृत | पं० जिनदासशास्त्रीकृत टिप्पणसहित | मू० |) २८ जैन - शिलालेख संग्रह - श्रवणबेलगोल (जैन बद्री) के तमाम शिलालेखों का अपूर्व संग्रह, इसका सम्पादन बाबू हीरालालजी जैन, एम०ए०, एलएल०बी०ने किया है । प्रत्येक लेखका सारांश हिन्दीमें दे दिया गया है । मू०२) २९-३०-३१ पद्मचरित - ( पद्मपुराण) आचार्य रविषेणकृत विशाल कथाग्रन्थ । मूल्य ५ ॥ ) नोट–नं० २, ५, ७, ९, १०, ११, १२, १३ के ग्रन्थ अब नहीं मिलते हैं । नाथूराम प्रेमी, मन्त्री, माणिकचन्द-जैन-ग्रन्थमाला, बाग, गिरगांव, बम्बई । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003658
Book TitleHarivanshpuranam Uttararddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Nyayatirth
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages426
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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