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वीरसेन थे ।
( ८ )
१ - हरिवंश पुराणके कर्त्ता के गुरुका नाम कीर्तिषेण है जब कि आदिपुराणके कर्त्ता के गुरु
२ - हरिवंशपुराणके कर्ता पुन्नाटसंघके आचार्य थे और आदिपुराण के कर्त्ता सेनसंघ के या पंचस्तूपान्वयके । दोनोंकी गुरुपरम्परा भी भिन्न है ।
३ - हरिवंशपुराणके प्रारंभके ३९ - ४० वें श्लोकोंमें उसके कर्त्ताने स्वयं ही पार्श्वाभ्युदयके कर्ता जिनसेन और उनके गुरु वीरसेनकी स्तुति की है जिससे दोनोंका पृथक्त्व बिल्कुल स्पष्ट हो जाता है । यह कहनेकी तो आवश्यकता ही नहीं है कि पार्श्वभ्युदयकर्त्ता जिनसेन ही आदिपुराणके कर्ता हैं । वे श्लोकये हैं
जितात्मपरलोकस्य कवीनां चक्रवर्तिनः । वीरसेनगुरोः कीर्तिरकलंकावभासते ॥ ३९ ॥ यामिताऽभ्युदये पार्श्वे जिनेन्द्र गुणसंस्तुतिः ।
स्वामिनो जिनसेनस्य कीर्त्तिः संकीर्तियत्यसौ ॥ ४० ॥
४- दोनों ग्रन्थोंका अच्छी तरह स्वाध्याय करनेसे भी भलीभाँति समझमें आजाता है कि इनके रचयिता भिन्न भिन्न हैं । दोनोंकी काव्यशैली, कथा कहनेका ढंग, उत्प्रेक्षायें, कल्पनायें आदि सभी में बहुत बड़ा
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