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रचनाका समय
हरिवंशपुराण शक संवत् ७०५ अर्थात् विक्रम संवत् ८४० में सम्पूर्ण हुआ है । यथा— शाकेष्वब्दशतेषु सप्तसु दिशं पञ्चोत्तरेषूत्तरां, पातीन्द्रायुधनाम्नि कृष्ण नृपजे श्रीवल्लभे दक्षिणाम् । पूर्वां श्रीमदवन्तिभूभृति नृपे वत्सादिराजेऽपरां, सौराणामधिमण्डलं जययुते वीरे वराहेऽवति ॥
अर्थात् शक संवत् ७०५ में जब कि उत्तर दिशा की इन्द्रायुध, दक्षिण दिशाकी कृष्णका पुत्र श्रीवल्लभ ( गोविंद द्वितीय), पूर्वकी अवन्तिनरेश वत्सराज, और पश्चिममें सौरोंके अधिमण्डल ( प्रदेश ) की वीर जयवराह नामक राजा रक्षा करता था, उस समय यह ग्रन्थ समाप्त किया गया ।
स्थान - परिचय
पहले वर्द्धमानपुर नामक विशाल नगरके नन्नराजकृत पार्श्वनाथ मन्दिर में और फिर दौस्तटिकाकी प्रजाद्वारा पूजित शान्त शान्तिनाथ मन्दिर में यह हरिवंशपुराण समाप्त हुआ— कल्याणैः परिवर्द्धमानविपुल श्रीवर्द्धमाने पुरे श्रीपार्श्वलयनन्नराजवसतौ पर्याप्तशेषः पुरा ।
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