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स्याद्वादसिद्धि
न तूने मुझसे कहा था कि भंते फिर मोघ पुरुष: ( फजूल के आदमी ) तू क्या होकर किसका प्रत्याख्यान करेगा ?
मालुंक्यपुत्त, जो ऐसा कहे मैं तब तक भगवानके पास ब्रह्मचर्यवास न करूँगा जब तक भगवान् मुझे यह न बतलावेंलोक शाश्वत है आदि । फिर तथागतने तो उन्हें अव्याकृत किया है और वह (बीच में ही ) मर जायना । जैसे पालुंक्यपुत, कोई पुरुष गाढ़े लेप वाले विषसे युक्त वाणसे विधा हो उसके हितमित्र भाई-बन्धु चिकित्सकको ले आयें और वह ( घायल ) यह कहे — मैं तब तक इस शल्यको नहीं निकालने दूँगा जब तक अपने वेधने वाले उस पुरुषको न जान लूँ कि वह ब्राह्मण है ? क्षत्रिय है ? वैश्य है ? शूद्र है ? अमुक नामका अमुक गोत्रका है ? लंबा है नाटा है मंझोला है ? आदि । जब तक कि उस वेधने वाले धनुपको न जान लूँ कि वह चाप है या कोदंड । ज्याको न जान लूँ कि वह की है या संठेकी ?... "तो मालुंक्यपुत्त वह तो अज्ञात ही रह जायेंगे और यह पुरुष मर जायगा । ऐसे ही मालुंक्यपुत्त जो ऐसा कहे तब तक और
वह मर जायगा । मालुंक्यपुत्त, 'लोक शाश्वत है' इस हाटके होने पर ही क्या ब्रह्मचर्यवास होगा ? ऐसा नहीं । 'लोक अशाश्वत है' इस दृष्टिके होने पर ही क्या ब्रह्मचर्यवास होगा ? ऐसा भी नहीं । मालुंक्यपुत्त, चाहे लोक शाश्वत है यह दृष्टि रहे, चाहे, लोक शाश्वत है यह दृष्टि रहे, जन्म है ही, जरा है ही, मरण है ही, शोक रोना कांदना दुःख दौर्मनस्य परेशानी हैं ही, जिनके इसी जन्म में विधानको मैं बतलाता हूं ।
इसलिये मालुंक्यपुत्त मेरे अव्याकृतको अव्याकृत के तौरपर धारण कर और मेरे व्याकृतको व्याकृतके तौरपर धारण कर* ?" * मज्झिमनिकाय हिन्दी अनुवाद |
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