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________________ ૨૦ स्याद्वादसिद्धि अनेक दोष आते हैं। अतः महेश्वर जगतका कत्तो नहीं है और तब उसे उसके द्वारा सर्वज्ञ सिद्ध करना अयुक्त है i ८. प्रत्सर्वज्ञसिद्धि इस तरह न बुद्ध सर्वज्ञ सिद्ध होता है और न महेश्वर आदि । पर ज्योतिषशास्त्रादिका उपदेश सर्वज्ञके बिना सम्भव नहीं है, अतः अन्ययोगव्यवच्छेद द्वारा अर्हन्त भगवान ही सर्वज्ञ सिद्ध होते हैं । मीमांसक - अहन्त वक्ता हैं, पुरुष हैं और प्राणादिमान हैं, अतः हम लोगोंकी तरह वे भी सर्वज्ञ नहीं हैं ? - जैन — नहीं, क्योंकि वक्तापन आदिका सर्वज्ञपनेके साथ विरोध नहीं है । स्पष्ट है कि जो जितना अधिक ज्ञानवान् होगा वह उतना ही उत्कृष्ट वक्ता आदि होगा। आपने भी अपने मीमांसादर्शनकार जैमिनिको उत्कृष्ट ज्ञानके साथ ही उत्कृष्ट वक्ता आदि स्वीकार किया है। मीमांसक - अर्हन्त वीतराग हैं, इसलिये उनके इच्छा के बिना वचनप्रवृत्ति नहीं हो सकती है ? जैन -- यह कहना भी ठीक नहीं है, क्योंकि इच्छा के बिना भी सोते समय अथवा गोत्रस्खलन आदि में वचनप्रवृत्ति देखी जाती है और इच्छा करनेपर भी मूर्ख शास्त्रवक्ता नहीं हो पाता। दूसरे, सर्वज्ञके निर्दोष इच्छा माननेमें भी कोई बाधा नहीं है और उस दशामें अर्हन्त भगवान् वक्ता सिद्ध हैं । मीमांसक - अर्हन्तके वचन प्रमाण नहीं हैं, क्योंकि वे पुरुषके वचन हैं, जैसे बुद्धके वचन ? जैन - यह कथन भी सम्यक नहीं है; क्योंकि दोषवान वचनोंको ही प्रमाण माना गया है, निर्दोष बचनोंको नहीं । श्रतः Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003653
Book TitleSyadvadasiddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Nyayatirth
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1950
Total Pages172
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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