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________________ हिन्दी-सारांश पर ध्यान रहे कि यह अनुमान अनुपायसिद्ध सर्वज्ञका साधक नहीं है, क्योंकि वह वक्ता नहीं है। सोपायमुक्त बुद्धादि यद्यपि वक्ता हैं किन्तु उनके वचन सदोष होने से वे भी सर्वज्ञ सिद्ध नहीं होते। । दूसरे, बौद्धोंने बुद्धको 'विधूतकल्पनाजाल' अर्थात् कल्पनाओं से रहित कहकर उन्हें श्रवक्ता भी प्रकट किया है और प्रवक्ता होनेसे वे सर्वज्ञ नहीं हैं। ___ तथा यौगों (नैयायिकों और वैशेषिकों) द्वारा अभिमत महेश्वर से स्व-पर-द्रोही दैत्यादिका सृष्टा होनेसे सर्वज्ञ नहीं है। यौग-महेश्वर जमतका कर्ता है, अतः वह सर्वज्ञ है; क्योंकि बेना सर्वज्ञताके उससे इस सुव्यवस्थित एवं सुन्दर जगतकी दृष्टि नहीं हो सकती है ? जैन-नहीं, क्योंकि महेश्वरको जगत्कर्ता सिद्ध करने वाला कोई 'माण नहीं है। • योग-निम्न प्रमाण है-'पर्वत आदि बुद्धिमानद्वारा बनाये ये हैं, क्योंकि वे कार्य हैं तथा जड-उपादान-जन्य है। जैसे सदिक ।' जो बुद्धिमान उनका कता है वह महेश्वर है। वह दि असर्वज्ञ हो तो पर्वतादि उक्त कार्योंके समस्त कारकोंका से परिज्ञान न होनेसे वे असुन्दर, अव्यवस्थित और वेडौल भी पन्न हो जायेंगे। अतः पर्वतादिका बनानेवाला सर्वज्ञ है ? जैन-यह कहना भी सम्यक नहीं है, क्योंकि यदि वह सर्वज्ञ ता तो वह अपने तथा दूसरोंके घातक दैत्यादि दुष्ट जीवोंकी ष्टि न करता। दूसरी बात यह है कि उसे आपने अशरीरी भी ना है पर बिना शरीरके वह जगत्का कर्ता नहीं हो सकता। हि उसके शरीरकी कल्पना की जाय तो महेश्वरका संसारी होना, * शरीर के लिये अन्ध-अन्य शरीरकी कल्पना करना आदि Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.003653
Book TitleSyadvadasiddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Nyayatirth
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1950
Total Pages172
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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