SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 57
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३५ प्रस्तावना और कोई दृष्टिगोचर नहीं आया। इसकी सूक्तियां और उपदेश हृदयस्पर्शी हैं । यह पद्यात्मक रचना है। इसमें क्षत्रियमुकुट जीवन्धरके, जो भगवान महावीर के समकालीन और सत्यन्धर नरेशके राजपुत्र थे, चरितका चित्रण किया गया है। उन्होंने भगवान से दीक्षा लेकर निर्वाण लाभ किया था और इससे पूर्व • अपने शौर्य एवं पराक्रमसे शत्रुओं पर विजय प्राप्त करके नीतिपृर्वक राज्यका शासन किया था । 2 2. ३. गद्यचिन्तामणि - यह ग्रन्थकारकी गद्यात्मक काव्यरचना है ! इसमें भी जीवन्धरका चरित निबद्ध है । रचना बड़ो ही सरस, सरल और अपूर्व है । पदलालित्य, वाक्यविन्यास, अनुप्रास और शब्दावलीकी छटा ये सब इसमें मौजूद हैं । जैन काव्य साहित्य की विशेषता यह है कि उसमें सरागताका वर्णन होते हुए भी वह गौरा - अप्रधान रहता है और त्रिरागता एवं श्रध्यात्मिकता लक्ष्य तथा मुख्य वर्णनीय होती है । यही बात इन दोनों काव्यग्रन्थों में है । काव्यग्रन्थ के प्रेमियोंको ये दानों काव्यग्रन्थ अवश्य ही पढ़ने योग्य हैं 1 प्रमाणनौका और नवपदार्थनिश्चय ये दो ग्रन्थ भी वादीभसिंहके माने जाते हैं। प्रमाणनौका हमें उपलब्ध नहीं हो सकी और इसलिये उसके बारेमें नहीं कहा जा सकता है कि वह प्रस्तुत वादमसिंहकी ही कृति है अथवा उनके उत्तरवर्ती किसो दूसरे वादी सिंहकी रचना है | नवपदार्थनिश्चय हमारे सामने है और जिसका परिचय अनेकान्त वर्ष १० किरण ४-५ में दिया गया है। इस परिचयसे हम इसी निष्कर्षपर पहुँचे हैं कि यह रचना स्याद्वादसिद्धि जैसे प्रौढ ग्रन्थोंके रचयिता की कृति ज्ञात नहीं होती । ग्रन्थकी भाषा विषय और वर्णनशैली www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.003653
Book TitleSyadvadasiddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Nyayatirth
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1950
Total Pages172
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy