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________________ स्याद्वादसिद्धि (६) पं० के० भुजबलीजी शास्त्री' ई० १०६० और ई० ११४७ के नं०३ तथा नं. ३७ के दो शिलालेखोंके आधारसे एक वादीभसिंह (अपर नाम अजितसेन)का उल्लेख करते हैं। (७ अ तसागरसूरिने भी सोमदेवकृत यशस्तिलक (आश्वास २- १२६) की अपनी टीकामें एक वादीभसिंहका निम्न प्रकार उल्लेख किया है और उन्हें सोमदेवका शिष्य कहा है:'वादीभसिंहोऽपि मदीयशिष्यः श्रीवादिराजोऽपि मदीयशिष्यः । इत्युक्त्वाच ।। वादिसिंह और वादीमसिंहके ये सात उल्लेख हैं जो अब तककी खोजके परिणामस्वरूप विद्वानोंको जैन साहित्यमें मिले हैं। अब देखना यह है कि ये सातों उल्लेख भिन्न भिन्न हैं अथवा एक ? अन्तिम उल्लेखको प्रमीजी, पं० कैलाशचन्द्रजी आदि विद्वान अभ्रान्त और विश्वसनीय नहीं मानते, जो ठीक भी है, क्योंकि इसमें उनका हेतु है कि न तो वादीमसिंहने ही अपनेको सोमदेवका कहीं शिष्य प्रकट किया और न वादिराजने ही अपने को उनका शिष्य बतलाया है । प्रत्युत वादीमसिंहने तो पुष्पसेन मुनिको और वादिराजने मतिसागरको अपना गुरु बतलाया है। दूसरे, सोमदेवने उक्त बचन किस ग्रंथ और किस प्रसङ्गमें कहा, यह सोमदेवके उपलब्ध ग्रन्थोंपरसे ज्ञात नहीं होता। अतः जबतक अन्य प्रमाणोंसे उसका समर्थन नहीं होता तबतक उसे प्रमाणकोटिमें नहीं रखा जा सकता १ देखो, जैनसिद्धान्तभास्कर भाग ६, कि० २ पृ० ७८ । २ देखो, ब्र. शीतलप्रसाद जो द्वारा सङ्कलित तथा अनुवादित 'मद्रास व मसूर प्रान्तके प्राचीन स्मारक' नामक पुस्तक । ३ देखो, जनसाहित्य और इतिहास पृ० ४८० । ४ देखो, न्यायकुमुद प्र. भा० प्रस्ता०पू० ११२ । Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org ww
SR No.003653
Book TitleSyadvadasiddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Nyayatirth
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1950
Total Pages172
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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