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________________ प्रस्तावना २. वादीभसिंहसूरि (क) वादीमसिंह और उनका समय ग्रन्थके प्रारम्भमें इस कृतिको वादीभसिंहसूरिकी प्रकट किया गया है तथा प्रकरणोंके अन्तमें जो समाप्तिपुष्पिकावाक्य दिये गये हैं उनमें भी इसे वादीभसिंहसूरिकी ही रचना बतलाया गया है, अतः यह निसन्देह है कि इस कृतिके रचयिता आचार्य वादोभसिंह हैं।। अब विचारणीय यह है कि ये वादीभसिंह कौनसे वादोभसिंह हैं और वे कब हुए हैं उनका क्या समय है ? आगे इन्हीं दोनों बातोंपर विचार किया जाता है । (१) आदिपुराणके कर्ता जिनसेनस्वामीने, जिनका समय ई० ८३८ है, अपने आदिपुराणमें एक 'वादिसिंह' नामके आचार्यका स्मरण किया है और उन्हें उत्कृष्ट कोटिका कवि,वाग्मो तथा गमक बतलाया है। यथा कवित्वस्य परा सीमा वाग्मितस्य परं पदम् । गमकत्वस्य पर्यन्तो वादिसिंहोऽर्च्यते न कैः ॥ (२) पार्श्वनाथचरितकार वादिराजसूरि (ई. १०२५) ने भी पार्श्वनाथचरितमें 'वादिसिंह' का समुल्लेख किया है और उन्हें इसी तरह 'तस्माद् दृष्टस्य भावस्य दृष्ट एवाखिलो गुणः। इति तद्वान् विरोधश्च तन्न व्यतिविदक्षजम् ॥ १३.८ ॥ इस कारिकाका पूर्वार्ध भी धर्मकीर्तिके प्रमाणवार्तिक १-४७ का पर्वार्द्ध है। १ यथा-'इति श्रीमद्वादीभसिंहसरिविरचितायां स्याद्वादसिद्धौ चा ___ किं प्रति जीवसिद्धिः ॥ १॥ इत्यादि । Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.003653
Book TitleSyadvadasiddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Nyayatirth
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1950
Total Pages172
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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