SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 21
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सम्पादनके विषयमें इस तरह ग्रन्थको मूल ताडपत्र प्रतिसे मिलानादि द्वारा प्रेसमें देने योग्य बनाकर उसे जुलाई १६४६ में अकलङ्क प्रेस, देहलीको छपनेके लिये दे दिया और ७ अप्रेल १६५० तक वह प्रस्तावनादि सहित छपकर तैयार होगया। किन्तु दुःख है कि कुछ विघ्नबाधाओं एवं कारणोंसे, जिनमें मेरे शिशुका जन्म लेकर १८ दिन बाद वियोग हो जाना भी एक खास कारण है और जिसने बहुत ही उत्साह भङ्ग किया, ग्रन्थको जल्दी प्रस्तुत नहीं कर सके। प्रति-परिचय __ ग्रन्थके संशोधन और सम्पादनमें हमने मुख्यतः 'त', 'स' प्रतियों और कहीं-कहीं 'क' प्रतिका भी उपयोग किया है। इन तीनों प्रतियोंका परिचय इस प्रकार है :____१. त प्रति-यह ताडपत्रज्ञापक 'त' संज्ञक मूल ताडपत्रीय प्रति है जो 'स', 'क' दोनों प्रतियांकी मातृप्रति है। मूडबिद्रीके जैन-मठके भण्डारमें जो ६०६ संख्याङ्कित ताडपत्रीय ग्रन्थ है और जिसमें ५५६ पत्र हैं उसीमें यह 'स्याद्वादसिद्धि' है। उसमें यह २३६ वें पत्रसे २५६ वें पत्र तक है। बीचमें २४७ से २५३ तक ७ पत्र गायब ( नष्ट ) हैं। अतः उपलब्ध ग्रन्थका लेख २३६ से २४६ तक ११ और २५४ से २५६ तक ३ कुल १५-+-३= १४ पत्रों में पाया जाता है। इन १४ पत्रों में ६७० कारिकाएँ हैं। २५६ से आगे कई पत्र उक्त ताडपत्र ग्रन्थमें नहीं हैं और इसलिए प्रस्तुत 'स्याद्वादसिद्धि' अपूर्ण एवं अधूरी ही उपलब्ध है। जो सात पत्र गायब हैं उनमें लगभग ३५० कारिकाएँ हानी चाहिएं; क्योंकि एक-एक पत्रमें प्रायः ५०-५० कारिकाएँ पाई जाती हैं। यदि ये सात पत्र और होते तो ३५०+-६७० = १०२० कारिकाओंका यह एक अपूर्व दार्शनिक ग्रन्थ जैनवाङ्मयकी अद्वितीय निधि होता। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003653
Book TitleSyadvadasiddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Nyayatirth
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1950
Total Pages172
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy