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________________ प्रय‍ द्वितीये सूत्रकृतांगे द्वितीयश्रुतस्कंधे द्वितीयाध्ययनं. अर्थ - एरीतें ते पूर्वोक्त स्वभाव वालो पुरुष निर्दय थको बाह्याभ्यंतर एवी पोतानी जे प रिषदा तेने पण पीडानो करनार एवो, उतो स्त्रियादिकना काम जोगने विषे मूर्च्छित गृ5 एट जे लोजी, जोगने विषे पोतें गुंथालो थको परम श्रासक्त बतो, यावत् चार, तथा पांच, तथा सात, तथा दश वर्ष एम अल्प काल अथवा घणोकाल सुधी जोगववा योग्य जोग जोगवीने, घा जीवनी साथे अनेक जातना वैर उपजावी वैरभावना स्थानकनो संचय करीने, ज्यां घ पापरूप हिंसादिक क्रूर कर्म संजारीकरी करेला कर्मने प्ररेतो एवा बतो, नरक रूप स्था नकने पामे. (सेज हाणामए के ० ) ते यथा दृष्टांते जेम (यगोलवा के०) लोहनो गोलो, (सेलगोल इवा के ० ) पाषाणनो गोलो, तेने (उदगंसिप कित्तेसमाणे के० ) पाणीना इहमां हे अथवा नदी तलाव मांहे नाख्यो थको, (उद्गतलमश्वत्ताइ के० ) उपलुं तनुं प्रति कमीने पाणीना तलामां जई पेसे, (अधर तिलपानवर के ० ) नीचे धरतिना त लाने विषे जइ बेसे. (एवमेव के० ) एरीतें (तहप्पगारे के०) तथा प्रकारें, ए पूर्वोक्त प्र कारना ष्ट निर्दय नास्तिक वादि प्रमुख एवा जे ( पुरिसजाते के ० ) पुरुष जातिले ते (वऊ बहुले के ० ) घणा पापरूप कर्म, (धूतबहुले के०) घणी कर्मरूपरज ( पंकबहुले के ० ) घणो क रूप कादव, (वेबदुले के० ) घणो जीवोनी साथे वैरनाव, (याप्पतियबहुले के० ) अविश्वासलायक एवं मननुं डयन ( यसबहुले के० ) घणो अपयश ( दंनबहु ले के०) घणुं कपट परने वंचवा पणु बे जेमां, ( पिय डिबहुले के० ) घणो वेष तथा जापानु पलटावकुंबे जेमां ( साइबहुले के०) सातिशय इव्य सायें गुणहीन पुरुषोना इव्यनुं मेलाaj (नस्सन्नंतसपाणघाती के० ) प्रायः त्रस प्राणी जीवनो घात करनार, ते ( कालमा सेकालं किच्चा के० ) कालने अवसरें काल करीने ( धरणितलमश्वइत्ताइ ho) पृथ्वीना ताने सहस्र योजन प्रमाण अतिक्रमि जाये; जइने, ( हे रगतल पानवइ के ० ) नीचें नरकना तलियाना स्थानकने विषे तेनुं पडवुं थाय. ॥६५॥ || दीपिका - ( एवमेवत्ति) एवमेव ते निर्दयाः स्त्रीप्रधानेषु कामेषु मूर्तिता गृायथिता अभ्युपपन्नायाव ६र्षाणि चतुःपंचपट्सप्त वा दशवाल्पतरंप्रनृततरं वा कालं नोगान् नु क्त्वा वैरायतनानि वैरानुबंधान् प्रविसूय उत्पद्य बहूनि पापकर्माणि संचित्य वर्धयित्वा उत्पन्नं प्रायः संचारकतेन कर्मणा प्रेर्यमाणानरकतलप्रतिष्ठानाः स्युः । यथाऽयोगोलः शिलागोलकोवा उदक दिप्त नदकतलमतिवर्त्य नल्लंघ्याधोधर तिलप्रतिष्ठानोभवति एवमे वसनरोवज्त्रं बध्यमानं कर्म तद्वदुलः धूनं प्राग्बदं कर्म तत्प्रचुरः पंकबहुल: पंकपाप वैरबदलः (याप्पत्तियत्ति ) मनसोऽर्थ्यानं दंनोमायया परवंचनं निकृतिर्नापावेषादिपरा वर्त्तेन परोहबुधिः सातिशयेन इव्येाहीनड्व्यस्य मेलनं सातिः तद्वदुलः प्रयशोबदु Jain Education International For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003652
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1880
Total Pages1050
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size42 MB
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